जस्टिस बेला एम त्रिवेदी आज रिटायर हो रही है. हालांकि, उनका ऑफिसियल रिटायरमेंट डे 9 जून था, लेकिन उन्होंने आज ही सेवानिवृति का फैसला लिया है.
Image Credit: my-lord.inजस्टिस बेला एम त्रिवेदी चार साल तक सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में सेवा दी. इस दौरान वे 238 बेंचों का हिस्सा बनी और 79 मामलों में फैसला लिखा है. आइये जानते हैं उनमें से पांच जजमेंट को...
Image Credit: my-lord.inपहला, डीके गांधी मामले में वकीलों को कंज्यूमर प्रोटेक्शन के तहत जिम्मेदार नहीं ठहराने जा सकता है. यह फैसला जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की अगुवाई वाली दो जजों की पीठ ने लिखा है.
Image Credit: my-lord.inदूसरा, अटॉर्नी जनरल बनाम सतीश (2021): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया जिसमें कहा गया था कि बच्चों के यौन अपराधों से संरक्षण अधिनियम, 2012 ('POCSO') के तहत यौन उत्पीड़न के लिए 'त्वचा से त्वचा' का संपर्क आवश्यक है.
Image Credit: my-lord.inजस्टिस ने कहा कि त्वचा' और 'स्पर्श' की संकीर्ण परिभाषा अपनाने से प्रावधान की एक बेतुकी व्याख्या होगी. विभिन्न प्रकार के शारीरिक हमले, जो किसी भी उपकरण के माध्यम से पीड़ित पर किए जाते हैं, POCSO के दायरे से बाहर हो जाएंगे.
Image Credit: my-lord.inतीसरा जनहित अभियान मामले में, वह पांच न्यायाधीशों की उस संविधान पीठ का हिस्सा थीं, जिसने 3:2 के बहुमत से नवंबर 2022 में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण को बरकरार रखा, जिसके दायरे से एससी/एसटी/ओबीसी श्रेणियों के गरीबों को बाहर रखा गया था.
Image Credit: my-lord.inचौथा पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह, सात जजों की संविधान पीठ, जिसमें जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल थीं, ने अगस्त 2024 में 6:1 के बहुमत से माना कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है.
Image Credit: my-lord.inहालांकि, जस्टिस त्रिवेदी ने अपने 85 पन्नों के असहमति वाले फैसले में कहा कि केवल संसद ही किसी जाति को एससी सूची में शामिल कर सकती है या उसे बाहर कर सकती है, और राज्यों को इसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है.
Image Credit: my-lord.inपांचवा, देश भर पॉक्सो अदालत बनाने और समय पर बाल यौन उत्पीड़नों की सुनवाई को लेकर जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने अहम फैसला सुनाया है.
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