जीवनसाथी को यौन संबंध बनाने की अनुमति न देना क्यों है 'मानसिक क्रूरता'?

My Lord Team

Image Credit: my-lord.in | 26 May, 2023

तलाक का मामला

तलाक से जुड़े एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में टिप्पणी की कि लंबे समय तक जीवनसाथी को शारीरिक संबंध न बनाने देना एक मानसिक क्रूरता है. पति ने इस आधार पर पत्नी से तलाक की मांग की थी कि उसकी पत्नी काफी समय से उसके साथ यौन संबंध बनाने नहीं दे रही है और ना ही उसके साथ रह रही है

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यौन संबंध न रखना 'मानसिक क्रूरता'

मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने क्रूरता के आधार पर पति को पत्नी से तलाक लेने की अनुमति दी, और यह भी माना कि पति या पत्नी की तरफ से लंबे समय तक अपने जीवनसाथी के साथ बिना पर्याप्त कारण के यौन संबंध न रखना एक तरह की मानसिक क्रूरता है

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तलाक देने की अनुमति

मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक देने की अनुमति देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुनीत कुमार और राजेंद्र कुमार-4 की खंडपीठ ने यह मत्वपूर्ण टिप्पणी की

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मामला क्या था

पति ने इसके बाद हाईकोर्ट का रुख किया और अदालत को बताया कि दोनों की शादी 1979 में हुई. शादी के कुछ समय बाद ही पत्नी का व्यवहार बदल गया और पत्नी ने उसके साथ रहने से इनकार कर दिया. उसने कोर्ट को बताया कि बहुत समझाने के बावजूद पत्नी अलग होकर अपने माता-पिता के घर में रहने लगी

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पंचायत का फैसला

पति ने बताया कि शादी के छह महीने बाद उसने पत्नी को वापस लाने के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन पत्नी ने मना कर दिया. जुलाई 1994 में गांव में एक पंचायत बैठी, और इस शर्त के साथ आपसी सहमति से तलाक की मंजूरी दी कि वह अपनी पत्नी को 22000 रुपए का स्थायी गुजारा भत्ता देना होगा

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फैमिली कोर्ट में याचिका खारिज

इसके बाद पत्नी ने दूसरी शादी कर ली और पति ने मानसिक क्रूरता के आधार तलाक की मांग की, लेकिन वो अदालत में पेश नहीं हुई. इसके पहले पति की ओर से Hindu Marriage Act, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक याचिका फैमिली कोर्ट में दायर की गई थी, लेकिन उसकी याचिका को फैमिली कोर्ट ने एकतरफा तलाक खारिज करने का आदेश दिया. इस आदेश के खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में अपील की थी

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हाई कोर्ट का फैसला

कोर्ट ने दलीलें और सबूतों को परखने के बाद कहा कि पति ने ऐसा कोई भी सबूत नहीं पेश किया है, जिससे साबित हो सके कि महिला ने दूसरी शादी कर ली है, लेकिन ये भी स्पष्ट है कि दोनों काफी समय से अलग रह रहे हैं और पति की ओर से पेश किए गए सबूतों का खंडन करने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है

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फैमिली कोर्ट के फैसले में गलती

हाई कोर्ट ने यह भी माना कि फैमिली कोर्ट ने फैसले लेने में गलती की थी. इसके बाद हाईकोर्ट ने पति को तलाक की अनुमति दी और कहा-"जीवनसाथी रहे पति या पत्नी को एक साथ जीवन फिर से शुरू करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. पति-पत्नी को शादी में हमेशा बांधे रखने की कोशिश करने से कुछ नहीं मिलता है"

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