समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं को क्यों सता रहा डर

My Lord Team

Image Credit: my-lord.in | 23 May, 2023

सुप्रीम कोर्ट से अनुकूल फैसले की उम्मीद

समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ता समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से अनुकूल फैसले की उम्मीद जता रहे हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं को यह डर सता रहा कि SC के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार अध्यादेश ला सकती है

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एआईपीसी का पैनल डिस्कशन

ऑल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस (AIPC) के पश्चिम बंगाल चैप्टर ने रविवार को 'मैरिज इक्वेलिटी: लीगलाइजिंग सेम-सेक्स मैरिज' पर एक इंटरैक्टिव पैनल डिस्कशन का आयोजन किया था. जिसमें प्रतिभागियों ने अपने डर को साझा किया

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शक की वजह

11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण और अधिकार के संबंध में फैसला सुनाते हुए कहा कि दिल्ली की नौकरशाही पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण है, लेकिन इस आदेश को नकारने के लिए केंद्र ने हफ्तेभर में ही एक अध्यादेश जारी कर दिया, इसके बाद से ही समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं को डर सता रहा

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SC के फैसले का इंतजार

समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता को लेकर करीब 20 याचिकाएं दायर की गई थी. जिस पर सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य संविधान पीठ ने सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रख लिया है

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10 दिनों की ऐतिहासिक सुनवाई

CJI की अध्यक्षता में 5 सदस्य संविधान पीठ ने अप्रैल माह में 18, 19, 21, 25, 26 और 27 तारीखों में सुनवाई की. वही मई माह में 3, 10 और 11 मई को सुनवाई करते हुए कुल 10 दिन तक सुनवाई की है

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5 सदस्य संविधान पीठ

CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य संविधान में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली, जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल है

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मामले की शुरुआत

साल 2018 में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हैदराबाद के रहने वाले गे कपल सुप्रिया चक्रवर्ती और अभय डांग ने सबसे पहले समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की

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किसने किसका रखा पक्ष

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, मेनका गुरुस्वामी, वकील अरुंधति काटजू ने दलीलें पेश की. वही केंद्र सरकार का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा

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पक्ष और विपक्ष

केंद्र सरकार के साथ- साथ इस्लामिक धार्मिक संस्था जमीयत-उलमा-ए-हिंद और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने भी विरोध किया.वहीं दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस मामले में याचिकाओ का समर्थन किया

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BCI की निंदा

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने अस्पष्ट तौर पर विरोध करते हुए इस मामले को संसद के लिए छोड़ने का अनुरोध किया, हालांकि BCI के इस बयान की सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने निंदा की थी

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