इलाहाबाद हाई कोर्ट में जस्टिस संगीता चंद्रा और न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार जौहरी की खंडपीठ ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे अंतर-धार्मिक जोड़े को सुरक्षा देने से इंकार करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी लिव-इन रिलेशनशिप को बढ़ावा नहीं देता
Image Credit: my-lord.inलिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे 29 साल की हिंदू महिला और 30 वर्षीय मुस्लिम व्यक्ति के द्वारा सुरक्षा के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी
Image Credit: my-lord.inयाचिकाकर्ता ने यह दावा किया कि हिंदू महिला की मां को यह लिव-इन रिलेशनशिप नामंजूर था. कपल के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज किया गया था तब से पुलिस उन्हे परेशान कर रही है
Image Credit: my-lord.inकपल ने तर्क दिया कि किसी भी व्यक्ति को उनके निजी जीवन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, इसके बावजूद पुलिस परेशान कर रही है. लता सिंह बनाम यूपी राज्य (2006) मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने अदालत से सुरक्षा की गुहार लगाई
Image Credit: my-lord.inअदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे संबंधों को भले ही एक सामाजिक वास्तविकता के रूप में स्वीकार किया हो लेकिन कभी बढ़ावा नहीं दिया. SC ने जब विभिन्न मामलों में लिव-इन संबंधों पर टिप्पणी की तो उसका भारतीय पारिवारिक जीवन के ताने-बाने को उजागर करने का कोई इरादा नहीं था
Image Credit: my-lord.inअदालत ने कहा कि हमारे देश का कानून परंपरागत रूप से विवाह के पक्ष में पक्षपाती रहा है. इसलिए विवाहित व्यक्तियों के लिए कई अधिकार और विशेषाधिकार को भी सुरक्षित रखता है
Image Credit: my-lord.inपीठ ने कहा कि हाई कोर्ट का रिट क्षेत्राधिकार, एक असाधारण क्षेत्राधिकार है जो निजी पक्षों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए नहीं है, और कहा कि यह एक सामाजिक समस्या है, जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के उल्लंघन की आड़ में रिट कोर्ट के हस्तक्षेप से नहीं बल्कि सामाजिक रूप खत्म किया जा सकता है
Image Credit: my-lord.inअदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता इस मामले में कोर्ट के समक्ष प्रथम सूचना रिपोर्ट दायर कर सकते हैं, अगर उन्हें अपने रिश्तेदारों से जीवन पर कोई खतरा है
Image Credit: my-lord.inसाथ ही, यह भी कहा कि अगर माता-पिता या रिश्तेदारों को पता चलता है कि उनका बेटा या बेटी कम उम्र में या उनकी इच्छा के खिलाफ शादी के लिए भाग गए हैं, तो वो भी समान कदम उठाने के लिए स्वतंत्र है
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