यह एक कानूनी नोटिस होता है जो किसी केस में अभियुक्त के खिलाफ जारी किया जाता है. दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC), 1908 में इससे संबंधित प्रावधान बताये गए हैं
Image Credit: my-lord.inगिरफ्तारी का वारंट हमेशा किसी अदालत या फिर सेमी ज्यूडिशियल कोर्ट (Semi-Judicial Court) जैसे कलेक्टर, एसडीएम इत्यादि द्वारा जारी किया जाता है. इनके अलावा किसी भी व्यक्ति के पास यह अधिकार नहीं है
Image Credit: my-lord.inकिसी मामले में किसी व्यक्ति का बयान लेने के लिए या वह व्यक्ति जो किसी केस में अभियुक्त है उसे अदालत के सामने पेश होने के लिए यह वारंट जारी किया जाता है
Image Credit: my-lord.inअदालत वारंट बनाकर संबंधित थाना क्षेत्र के थाना प्रभारी के नाम पर जारी कर यह आदेश देती है कि किसी भी सूरत में उक्त नामित व्यक्ति को गिरफ्तार कर अदालत के सामने पेश किया जाए
Image Credit: my-lord.inइस धारा में यह प्रावधान किया गया है कि अदालत किसी भी व्यक्ति को ऐसा वारंट जारी कर सकती है जो नामित व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए सक्षम होगा
Image Credit: my-lord.inगिरफ्तारी वारंट की अवधि दो स्थितियों में ही समाप्त होती है, पहली जब पुलिस नामित व्यक्ति को गिरफ्तार कर अदालत के सामने पेश कर देती है, या फिर नामित व्यक्ति खुद को सरेंडर कर दे
Image Credit: my-lord.inव्यक्ति को जेल भेजना है या नहीं यह उस मूल प्रकरण पर निर्भर करता है जिसके लिए सम्बंधित व्यक्ति को अदालत ने बुलाया है. गैर जमानती अपराधों में व्यक्ति को जेल जाना ही पड़ता है लेकिन जमानती अपराध में ऐसा नहीं होता
Image Credit: my-lord.inपुलिस का काम केवल अदालत द्वारा जारी किए गए गिरफ्तारी के वारंट पर व्यक्ति को गिरफ्तार कर अदालत के सामने पेश करना है. सीधे जेल भेजने की शक्ति पुलिस के पास नहीं होती है, लेकिन वह वारंट में नामित व्यक्ति को 24 घंटे तक थाने में अपनी अभिरक्षा में रख सकती है
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