रॉलेट-एक्ट को काला कानून भी कहा जाता है. इसको ब्रिटिश सरकार ने भारत के लोगों को स्वतंत्र संघर्ष में कुचलने के लिए बनाया था. जिसका कार्य भारत में क्रांतिकारियों की आवाज़ को दबाने के लिए एक प्रभावी योजना का निर्माण करना था
Image Credit: my-lord.inअंग्रेज सरकार ने 1916 में न्यायाधीश सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, रॉलेट एक्ट 1919 का इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा पारित किया गया था
Image Credit: my-lord.inक्रांतिकारियों के मुकदमे को हाईकोर्ट के तीन जजों की अदालत में पेश किया जाना ,किसी भी व्यक्ति के पास गैरकानूनी सामग्री होना या उसको आगे सप्लाई करना अपराध माना जाएगा, राजद्रोह (sedition) के मुकद्दमे की सुनवाई के लिए एक अलग न्यायालय स्थापित जाना
Image Credit: my-lord.inइस अधिनियम ने पुलिस को असीमित अधिकार प्रदान किये थे, पुलिस को परिसर की तलाशी लेने और बिना वारंट के किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार दिया, पुलिस को राजनीतिक कार्यकर्ताओं और संदिग्धों को बिना कोशिश किए हिरासत में लेने के लिए अधिकृत किया. किसी व्यक्ति को शक के आधार पर ही 2 वर्ष के लिए कारावास में ड़ाल दिए जाने का प्रावधान था
Image Credit: my-lord.inइस एक्ट के तहत ना अपील, ना दलील, ना वकील वाला सिद्धांत लागू किया गया. इसके अंदर ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार दिया गया था कि वह किसी भी भारतीय को अदालत में बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद कर सकते थे
Image Credit: my-lord.inपूरे देश में औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ आक्रोश था. इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के निर्वाचित भारतीय प्रतिनिधियों जैसे मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना और मजहर उल हक ने बिल के खिलाफ दिया इस्तीफा
Image Credit: my-lord.inगांधी जी ने इस कानून की आलोचना की थी, क्योंकि उन्हें लगता था कि केवल एक या कुछ लोगों द्वारा किये गये अपराध के लिए लोगों के एक समूह को दोषी ठहरा कर उन्हें सजा देना नैतिक रूप से गलत है। गांधी जी ने इसके खिलाफ आवाज उठाते हुए इसका विरोध किया
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