नार्को टेस्ट एक फोरेंसिक परीक्षण होता है. किसी आपराधिक मामले में सच को बाहर निकालने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा अपनाई जाने वाली एक प्रक्रिया है
Image Credit: my-lord.inनार्को टेस्ट का प्रयोग आरोपी व्यक्ति से जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है. इसका इस्तेमाल तब किया जाता है जब आरोपी जानकारी को देने में असमर्थ हो या वह जानकारी देना नहीं चाहता हो
Image Credit: my-lord.inनार्को टेस्ट में व्यक्ति को ट्रूथ सीरम इंजेक्शन दिया जाता है. इसके कारण व्यक्ति को खुद पर काबू नहीं रहता है और उससे केस से संबंधित सवाल किए जाते हैं
Image Credit: my-lord.inजब यह परीक्षण किया जाता है उस वक्त वहां जांच अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, चिकित्सक और फोरेंसिक विशेषज्ञ, ऑडियो वीडियोग्राफी और अन्य सहायक नर्सिंग स्टाफ भी मौजूद होते हैं. नार्को टेस्ट के वक्त मौजूद अधिकारी टेस्ट के बाद एक रिपोर्ट तैयार करते हैं, जिसे अदालत में पेश किया जाता है
Image Credit: my-lord.inभारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 में ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं है जो नार्को टेस्ट के बारे में बताता हो, लेकिन अदालत की मंजूरी पर अगर आरोपी व्यक्ति खुद इस टेस्ट के लिए हामी भर दे तो यह टेस्ट लिया जा सकता है
Image Credit: my-lord.inइस केस में सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धांत निर्धारित किया कि आरोपी व्यक्ति की सहमति के बिना नार्को-एनालिसिस टेस्ट नहीं किया जा सकता है. इस मामले में यह सवाल किया गया था कि क्या आरोपी व्यक्ति का नार्को-एनालिसिस टेस्ट कराना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन होगा?
Image Credit: my-lord.inइस सवाल के जवाब में “कोर्ट ने कहा कि यह उस प्रश्न की प्रकृति पर निर्भर करेगा जो आरोपी से पूछा जाना है. क्या आरोपी द्वारा दी गई कोई भी जानकारी उसे अपराध में फसाने की प्रवृत्ति रखती है या निर्दोष साबित करने की. दंड विधि के तहत पुलिस अधिकारी के पास साक्ष्य जुटाने की शक्ति है. इसी प्रकार आरोपी का नार्को एनालिसिस टेस्ट कराना भी सबूत इकट्ठा करने का हिस्सा है“
Image Credit: my-lord.inपिछले साल हुए श्रद्धा मर्डर केस का आरोपी आफताब अमीन पूनावाला का नार्को टेस्ट किया गया. इस टेस्ट में तकरीबन 2 घंटे लगे. इस केस में भी अदालत और आरोपित की मंजूरी के बाद ही नार्कों टेस्ट लिया गया था
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