आपराधिक विधि में सामान्य आशय (Common Intention) का महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि ऐसे अपराध जो बहुत सारे व्यक्तियों द्वारा मिलकर किए जाते हैं उनके अंतर्गत अपराधियों को दंडित किया जाना मुश्किल हो जाता है। सामान्य आशय ऐसे अपराधियों को सजा दिलाने में सहायता करता है जो मिलकर किसी एक कार्य को करते हैं
Image Credit: my-lord.inइस धारा के अनुसार जब दो या दो से अधिक व्यक्ति सामान्य आशय के तहत किसी कार्य को करने के लिए अपनी सहमति देते हैं, तो सह-अभियुक्त (co accused ) समान आपराधिक दायित्व के हकदार होते हैं, ऐसे मामले में हर एक सदस्य उस कार्य के लिए उत्तरदायी है, इस तरह से कि वह कार्य पूरी तरह से उन्होंने ही किया है
Image Credit: my-lord.inधारा 34 के अंतर्गत यदि किसी एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह में किसी आपराधिक कृत्य को एक इरादे के साथ अंजाम दिया है तो वह व्यक्ति तथा उसका साथ देने वाले सभी व्यक्ति एक ही प्रकार की सजा के पात्र होंगे
Image Credit: my-lord.inबरेंद्र कुमार घोष बनाम किंग एम्परर के मामले में अदालत ने उसे आईपीसी, 1860 की धारा 302 R/W धारा 34 के तहत हत्या के लिए दोषी ठहराया था
Image Credit: my-lord.inइस धारा में बताया गया है कि जब पांच या पांच से अधिक व्यक्ति एक सामान्य उद्देश्य की निरंतरता में, एक गैरकानूनी कार्य करते हैं, तो प्रत्येक व्यक्ति समान रूप से उत्तरदायी होता है, भले ही सह-अभियुक्तों के बीच पहले से ही मनमर्जी हुई हो या नहीं
Image Credit: my-lord.inविधिविरुद्ध जनसमूह के किसी सदस्य द्वारा किए गये अपराध में उस जनसमूह का हर सदस्य दोषी होगा। यदि किसी गैरकानूनी सभा के किसी सदस्य द्वारा अपराध किया जाता है, तो ऐसी सभा का हर दूसरा सदस्य अपराध का दोषी होगा
Image Credit: my-lord.inयूनिस बनाम मध्य प्रदेश राज्य में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि गैरकानूनी जमावड़े के हिस्से के रूप में अभियुक्त की उपस्थिति सजा सुनाए जाने के लिए पर्याप्त थी। तथ्य यह है कि अभियुक्त गैरकानूनी सभा का भागीदार था और घटना स्थल पर उसकी उपस्थिति उसे उत्तरदायी ठहराने के लिए पर्याप्त है, भले ही उस पर किसी प्रत्यक्ष कार्य का आरोप न हो
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