साक्ष्य कितने प्रकार के होते है?

My Lord Team

Image Credit: my-lord.in | 22 Mar, 2023

साक्ष्य क्या है

अदालत के समक्ष प्रस्तुत सभी मामले या आरोप को कुछ सबूतों के साथ समर्थन करना पड़ता है. अतः साक्ष्य का अर्थ है किसी तर्क के समर्थन में प्रस्तुत किए गए तथ्य का अवलोकन.

Image Credit: my-lord.in

मौखिक साक्ष्य

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 60 के अनुसार जब कोई व्यक्ति न्यायाधीश की उपस्थिति में मौखिक रूप से अदालत में बयान देता है, जो उसने स्वयं देखा या सुना हो तो उसे मौखिक साक्ष्य कहते हैं.

Image Credit: my-lord.in

दस्तावेज़ी साक्ष्य

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 में कहा गया है कि निरीक्षण के लिए कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किए गए सभी दस्तावेज जैसे- जन्म प्रमाण पत्र, अनुबंध, स्कूल की मार्कशीट आदि दस्तावेजी साक्ष्य होते हैं.

Image Credit: my-lord.in

प्राथमिक साक्ष्य

जब कोई दस्तावेज़ विभिन्न भागों में होता है तो दस्तावेज़ का प्रत्येक भाग प्राथमिक साक्ष्य का एक हिस्सा होता है और प्राथमिक साक्ष्य को सर्वोत्तम गुणवत्ता का साक्ष्य माना जाता है.

Image Credit: my-lord.in

द्वितीयक साक्ष्य

प्राथमिक साक्ष्य के अभाव में द्वितीयक साक्ष्य प्रस्तुत किया जाता है. जब मूल दस्तावेज़ से प्रतियां बनाई जाती हैं तो उसे द्वितीयक साक्ष्य कहते है जैसे- किसी दस्तावेज़ या फ़ोटो ग्राफ़ की फोटोकॉपी.

Image Credit: my-lord.in

भौतिक साक्ष्य

भौतिक साक्ष्य, मामले में शामिल भौतिक वस्तुओं, और चीजों से युक्त होते हैं जिन्हें कोई भी भौतिक रूप से पकड़ सकता है और निरीक्षण कर सकता है यानी उंगलियों के निशान, रक्त के सैंपल, हथियार, आदि.

Image Credit: my-lord.in

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य

साक्ष्य की परिभाषा में 'इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड' को शामिल करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 द्वारा संशोधन किया गया. यह इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्राप्त या भेजी गई कोई भी हो सकती है.

Image Credit: my-lord.in

अफवाह साक्ष्य

सुनी-सुनाई साक्ष्य का अर्थ है गवाह का कथन जो उसके व्यक्तिगत ज्ञान या अनुभव पर आधारित नहीं होता है बल्कि इस पर आधारित होता है जो उसने दूसरों से सुना है और इसे प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं माना जाता है.

Image Credit: my-lord.in

प्रत्यक्ष साक्ष्य

प्रत्यक्ष साक्ष्य ऐसा सबूत है जो वास्तिविक रूप में अदालत में तथ्य को साबित कर दे जिसमें अलग से कोई और साक्ष्य प्रस्तुत करने की ज़रुरत नहीं होती है और साक्ष्य देख कर ही सत्य का पता चल जाता है.

Image Credit: my-lord.in

प्राथमिक और द्वितीयक साक्ष्य में अंतर

प्राथमिक साक्ष्य किसी भी समय अदालत द्वारा स्वीकार्य है लेकिन द्वितीयक साक्ष्य केवल तभी स्वीकार्य होगा जब प्राथमिक साक्ष्य मौजूद नहीं है या अदालत में पेश नहीं किया गया है.

Image Credit: my-lord.in

पढ़ने के लिए धन्यवाद!

Next: National Emergency क्या है, और यह किन परिस्थितियों में लागू होता है?

अगली वेब स्टोरी