मेहर, वह स्त्रीधन है जो निकाह के समय पति द्वारा पत्नि को सम्मान के रूप में दिया जाता है. मेहर मुद्रा के रूप में होती है, लेकिन वह आभूषण, घरेलू सामान, फर्नीचर, या जमीन आदि के रूप में भी हो सकती है.
Image Credit: my-lord.inमेहर अनिवार्य रूप से दो प्रकार के होते हैं -निर्दिष्ट मेहर और अनिर्दिष्ट मेहर. निर्दिष्ट मेहर के भी दो प्रकार होते हैं- शीघ्र मेहर और आस्थगित मेहर.
Image Credit: my-lord.inयदि मेहर की राशि विवाह अनुबंध में वर्णित है, तो यह मेहर निर्दिष्ट होगी. निर्दिष्ट मेहर का सीधा सा अर्थ है की जहां मेहर में देनी वाली राशि तय की गई है जिसे पति द्वारा भुगतान किया जाना है.
Image Credit: my-lord.inशीघ्र मेहर मूल रूप से एक मेहर है जो शादी के बाद अदा की जाती है, जबकि आस्थगित मेहर की अदायगी तलाक या पति की मृत्यु के कारण विवाह समाप्त होने के बाद होती है.
Image Credit: my-lord.inयदि मेहर की राशि निर्दिष्ट नहीं है तो भी पति अपनी पत्नी को मेहर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है, इसलिए एक ऐसी राशि का होना जरुरी जो समाज में या प्रत्येक व्यक्ति के मामले में उचित हो.
Image Credit: my-lord.inमुस्लिम पत्नी मेहर की मांग करने के बाद भुगतान न होने पर अपने पति के साथ रहने से इंकार के साथ ही अपने दांपत्य संबंधों को निभाने से भी इंकार कर सकती है. यह उसका कानूनी औचित्य है.
Image Credit: my-lord.inअगर पति-पत्नी ने यौन संबंध बना लिया है तो वह उसके साथ रहने से इंकार नहीं कर सकती है, किन्तु वह मेहर की बकाया राशि की वसूली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है.
Image Credit: my-lord.inपति की मृत्यु के बाद पत्नि को अधिकार है कि वह अपने पति की संपत्ति को अपने कब्जे में रख सकती है, जब तक कि उसे अपने पति के कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा मेहर की राशि का भुगतान नहीं किया जाता है.
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