भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 3 (Section 3 of The Indian Evidence Act) के तहत 'साक्ष्य' वो है जिसकी मदद से एक पार्टी किसी मामले में अपने पक्ष को साबित करती है
Image Credit: my-lord.inसाक्ष्य मौखिक और लिखित, दोनों हो सकते हैं; मौखिक साक्ष्य में लोगों के बयान शामिल होते हैं और लिखित में ई-रिकॉर्ड्स समेत अन्य दस्तावेज जिन्हें अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है
Image Credit: my-lord.inभारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 60 के तहत हर मौखिक साक्ष्य को 'प्रत्यक्ष' होना चाहिए; इसकी परिभाषा क्या है, आइए जानते हैं
Image Credit: my-lord.inहर वो साक्ष्य जो किसी साक्षी ने अपनी आँखों से देखा हो, अपने कानों से सुना हो या जिसकी अनुभूति उसने अपने इंद्रियों द्वारा की हो, वो 'प्रत्यक्ष साक्ष्य' (Diret Evidence) कहलाता है
Image Credit: my-lord.inभारतीय साक्ष्य अधिनियम में 'परिस्थितिजन्य साक्ष्य' के नाम से कोई धारा नहीं है बल्कि साक्ष्य का यह टाइप 'प्रासंगिक तथ्यों' (Relevant Facts) के अंतर्गत आता है
Image Credit: my-lord.inपरिस्थितिजन्य साक्ष्य (Circumstantial Evidence) वो परिस्थितियां हैं, जो मामले या घटना के चारों ओर घूमने वाले तथ्यों का सबूत होती हैं, जिनके अवलोकन से घटना की तह तक पहुंचा जा सकता है
Image Credit: my-lord.inप्रत्यक्ष साक्ष्य सीधा घटना से जुड़ा होता है जिसकी मदद से सीधे निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है वहीं परिस्थितिजन्य साक्ष्य घटना से जुड़ी परिस्थितियों से संबंध रखता है और इसके आधार पर दंड केवल तब दिया जा सकता है जब उससे जुर्म साबित किया जा सके
Image Credit: my-lord.inकिसी भी मामले के लिए जो सर्वोत्तम साक्ष्य होता है, एक ऐसा प्रमाण जिसे किसी सत्यापन की जरूरत नहीं, वो प्रत्यक्ष साक्ष्य है जबकि परिस्थितिजन्य साक्ष्य का महत्त्व प्रत्यक्ष साक्ष्य से कम होता है
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