हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

My Lord Team

Image Credit: my-lord.in | 16 Jun, 2023

विधवा पुनर्विवाह की इजाजत और कानून

भारतीय समाज में कई कुरीतियां थी जिन्हें वक़्त से साथ सुधारा गया, जिनमे से एक थी विधवाओं को पुनर्विवाह की इजाजत न देना, लेकिन बाद में उन्हें विवाह की इजाजत भी मिली और इसके लिए कानून भी बनाया गया

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हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम

हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 भारत में हिन्दू विधवा महिलाओं को पुनर्विवाह की इजाजत देता है और साथ ही इसे कानूनी मान्यता भी प्रदान करता है. इस अधिनियम के बाद से न सिर्फ उन्हें पुनर्विवाह हेतु कानूनी मान्यता मिली बल्कि सामाजिक मान्यता भी मिलने लगी

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शादी के बाद के सब अधिकार प्राप्त हुए

हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के तहत विधवा महिलाओं को शादी के अधिकार के साथ ही उन्हें वो सब अधिकार प्रदान होते है तो किसी अन्य महिला को शादी के बाद मिलते हैं

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विधवा विवाह करने वाले पुरुषों को सुरक्षा

इस कानून के तहत उन पुरुषों को भी सुरक्षा प्रदान की गयी है, जो विधवा महिलाओं से विवाह करते हैं. इसके साथ ही इस कानून में विधवा महिला को पिछली शादी से मिली विरासत व अधिकार प्राप्त करने का प्रावधान भी किया गया है

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ईश्वर चंद्र विद्यासागर के प्रयासों का असर

भारत में हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर में लागू हुआ था. इस कानून को लागू कराने के लिए महान समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर के प्रयासों का बड़ा असर रहा. उन्ही के नेतृत्व में हिन्दू विधवा महिलाओं को विवाह का अधिकार देने के लिए लड़ाई लड़ी गयी, और 16 जुलाई, 1856 को ये कानून पारित हुआ और 26 जुलाई, 1856 को लागू भी हो गया

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पहला विधवा पुनर्विवाह 7 दिसंबर 1856 को सम्पन्न हुआ

भारत के पहले गवर्नर लॉर्ड कैनिंग ने भारत में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 को इम्प्लीमेंट किया था। इस अधिनियमन के लागू होने के उपरान्त इस तरह का पहला विवाह 7 दिसंबर 1856 को उत्तरी कलकत्ता में सम्पन्न हुआ

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कर्नाटक हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मामले में विधवा महिला के दूसरी शादी कर लेने पर पहले पति की संपत्ति पर दावे को पर कहा कि भले ही विधवा महिला ने दूसरी शादी कर ली है, लेकिन इससे उसका मृत पति ( पहले पति) की संपत्ति पर हक खत्म नहीं हो जाता

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पति की संपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

पति की संपत्ति पर हक के सम्बन्ध में, सुप्रीम कोर्ट ने महिला के संपत्ति पर सीमित अधिकार को लेकर कहा की यदि पति के जिंदा रहते किसी संपत्ति पर उसका सीमित अधिकार है और पति के जीवित रहते उस संपत्ति की देखभाल का काम वही करती रही है तो पति की मौत के बाद उस संपत्ति पर उसका पूरा अधिकार हो जाएगा

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हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत

सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में स्पस्ट रूप से कहा कि पति की मौत के साथ ही महिला का संपत्ति पर सीमित अधिकार पूर्ण अधिकार में बदल जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय देते समाया हिंदू उत्तराधिकार कानून-1956 के सेक्शन 14(1) का हवाला दिया था

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