मातृत्व अवकाश से जुड़े एक मामले में हाई कोर्ट ने कहा कि मातृत्व अवकाश कामकाजी महिला के लिए एक मौलिक अधिकार है. इससे वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 29 और 39 का उल्लंघन
Image Credit: my-lord.inएक दैनिक वेतन भोगी महिला कर्मचारी ने 1996 में बच्चे को जन्म देने के बाद तीन महीने के लिए मातृत्व अवकाश लिया था. गर्भावस्था और प्रसव के कारण, उसने एक साल में 240 दिनों के बजाय 156 दिन ही काम किए. जिसके कारण महिला को लाभ नहीं मिला
Image Credit: my-lord.inहिमाचल प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने महिला को डीम्ड मैटरनिटी लीव का लाभ देते हुए कहा था कि मातृत्व अवकाश को औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25(B)(1) के तहत निरंतर सेवा माना जाना चाहिए. इस आदेश को राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में चुनौती दी
Image Credit: my-lord.inमामले की सुनवाई कर रहें जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने कहा हर कामकाजी महिला को प्रेगनेंसी के दरमियान अवकाश लेने का अधिकार इसलिए दिया गया है ताकि मातृत्व की गरिमा की रक्षा की जा सके,साथ ही महिला और उसके बच्चे दोनों की भलाई सुनिश्चित किया जा सके
Image Credit: my-lord.inअनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा से संबंधित है वहीं अनुच्छेद 39(D) सभी नागरिकों के लिए आजीविका के पर्याप्त साधनों से जुड़ा है
Image Credit: my-lord.inकोर्ट ने दिल्ली नगर निगम बनाम महिला श्रमिक (मस्टर रोल) और अन्य (2000) का जिक्र करते हुए कहा मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के तहत नियमित और दैनिक दोनों तरह के वेतन पाने वाली महिला को इस अवकाश का लाभ पाने का हक है
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