जानें डेथ वारंट और ब्लैक वारंट से जुड़ी अहम बातें

My Lord Team

Image Credit: my-lord.in | 09 Feb, 2023

डेथ या ब्लैक वारंट

जब कोर्ट किसी अपराधी को सजा-ए-मौत की सजा देता है तब कोर्ट जेलर को उस कैदी का डेथ या ब्लैक वारंट भेजता है, जिसके 15 दिन के अंदर कैदी को फांसी दी जाती है.

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सजा-ए-मौत

सजा-ए-मौत मिलने के बाद जब ये मामला हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, राज्यपाल, राष्ट्रपति द्धारा खारिज होता है तब जेलर इसकी जानकारी देते हुए कोर्ट को देता है तब डेथ वारंट जारी होता है.

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ऑन-रिकॉर्ड

जज सभी खारिज याचिकाएं को "ON RECORD” रखते हुए डेथ वारंट जारी करते है. यह सीलबंद लिफाफे में काफी गोपनीय तरीके जेलर के पास जाता है.

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वारंट में क्या होता है

वारंट Crpc की फॉर्म 42 के रूप में होता है, जिसमें कैदी नंबर, कितने दोषी है, दोषी के नाम, केस नंबर, डेथ वारंट की डेट, फांसी की डेट, समय, स्थान, फांसी पर कितने देर तक लटकाना है, जज के साइन होती है.

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CrPC की धारा 413

CrPC की धारा 413 में जिला अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा के बाद हाईकोर्ट Crpc की धारा 368 के तहत पुष्टि करने के बाद डेथ वारंट जारी करता है.

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CrPC की धारा 414

CrPC की धारा 414 के अनुसार जिला न्यायालय द्वारा दी गई फांसी की सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका का निस्तारण करते हुए हाईकोर्ट अपराधी को मौत की सजा सुनाता है.

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फांसी के बाद

मौत के बाद जेलर डेथ सर्टिफिकेट, डॉक्टर, सब डिविजनल मजिस्ट्रेट, डिप्टी जेलर और पुलिसकर्मी के हस्ताक्षर के साथ डेथ वारंट भी कोर्ट में जमा करता हैं. वारंट पर अंतिम साइन जज के होते हैं जिन्होंने फांसी की सजा दी थी.

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61 दोषियों को मिली है फांसी

भारत में कानूनी रूप से 61 दोषियों को फांसी की सजा मिल है, जिसमें निर्भया रेप केस और 1993 के बम धमाके के दोषी याकूब मेमन शामिल है.

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