जब कोर्ट किसी अपराधी को सजा-ए-मौत की सजा देता है तब कोर्ट जेलर को उस कैदी का डेथ या ब्लैक वारंट भेजता है, जिसके 15 दिन के अंदर कैदी को फांसी दी जाती है.
Image Credit: my-lord.inसजा-ए-मौत मिलने के बाद जब ये मामला हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, राज्यपाल, राष्ट्रपति द्धारा खारिज होता है तब जेलर इसकी जानकारी देते हुए कोर्ट को देता है तब डेथ वारंट जारी होता है.
Image Credit: my-lord.inजज सभी खारिज याचिकाएं को "ON RECORD” रखते हुए डेथ वारंट जारी करते है. यह सीलबंद लिफाफे में काफी गोपनीय तरीके जेलर के पास जाता है.
Image Credit: my-lord.inवारंट Crpc की फॉर्म 42 के रूप में होता है, जिसमें कैदी नंबर, कितने दोषी है, दोषी के नाम, केस नंबर, डेथ वारंट की डेट, फांसी की डेट, समय, स्थान, फांसी पर कितने देर तक लटकाना है, जज के साइन होती है.
Image Credit: my-lord.inCrPC की धारा 413 में जिला अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा के बाद हाईकोर्ट Crpc की धारा 368 के तहत पुष्टि करने के बाद डेथ वारंट जारी करता है.
Image Credit: my-lord.inCrPC की धारा 414 के अनुसार जिला न्यायालय द्वारा दी गई फांसी की सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका का निस्तारण करते हुए हाईकोर्ट अपराधी को मौत की सजा सुनाता है.
Image Credit: my-lord.inमौत के बाद जेलर डेथ सर्टिफिकेट, डॉक्टर, सब डिविजनल मजिस्ट्रेट, डिप्टी जेलर और पुलिसकर्मी के हस्ताक्षर के साथ डेथ वारंट भी कोर्ट में जमा करता हैं. वारंट पर अंतिम साइन जज के होते हैं जिन्होंने फांसी की सजा दी थी.
Image Credit: my-lord.inभारत में कानूनी रूप से 61 दोषियों को फांसी की सजा मिल है, जिसमें निर्भया रेप केस और 1993 के बम धमाके के दोषी याकूब मेमन शामिल है.
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