न्यायिक समीक्षा के सिद्धांत कि उत्पत्ति एंव विकास अमेरिका में मार्बरी बनाम मेडिसन (1803) में पहली बार हुआ, जॉन मार्शल ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया था जो उस समय अमेरिका के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश थे
Image Credit: my-lord.inभारतीय संविधान में न्यायिक समीक्षा शब्द का प्रयोग कहीं भी नहीं किया गया है लेकिन अनुच्छेद 13 के तहत सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति दी गई है कि वह कानूनों की समीक्षा कर सकता है. इसके तहत सम्बंधित कानून की संवैधानिकता की जांच होती है
Image Credit: my-lord.inपहला वह यदि मूल अधिकारों का उल्लंघन करता हो, दूसरा विधायिका द्वारा उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर बनाया गया हो, और तीसरा संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत हो- तो न्यायिक समीक्षा के विषय के अंतर्गत आएगा
Image Credit: my-lord.inसुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि न्यायिक समीक्षा संविधान के बेसिक ढांचे का हिस्सा है, और आगे यह भी कहा है कि 1951 में भारतीय संविधान में जो 9th Schedule जोड़ा गया है जिसमें व्यवस्था की गई है कि इसमें जो भी कानून जोड़े जाएंगे उनका Judicial Review नहीं किया जाएगा
Image Credit: my-lord.inअनुच्छेद 372(1) भारतीय संविधान के लागू होने से पूर्व बनाए गए किसी कानून की न्यायिक समीक्षा से संबंधित प्रावधान करता है, अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 सुप्रीम कोर्ट एंव उच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों का रक्षक एवं गारंटीकर्त्ता की भूमिका प्रदान करते हैं
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