हिंदू लॉ में Maintenance के कितने प्रकार हैं?

My Lord Team

Image Credit: my-lord.in | 05 Jun, 2023

हिंदू कानून के अनुसार

तलाक ले रहे पति या पत्नी के अलावा हमारे देश में वो माता पिता जो अपना गुजारा भत्ता निकालने में असमर्थ हैं वह भी भरण पोषण का दावा कर सकते हैं. हिंदू कानून में जानिए कितने तरह के होते हैं भरण पोषण

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क्या होता है Maintenance

भरण पोषण (Maintenance) मांगने का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है. कानून के अनुसार अलगाव या तलाक के बाद भरण पोषण एक पति द्वारा पत्नी को भुगतान की जाने वाली आर्थिक सहायता है

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CrPC की धारा 125

दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC), की धारा 125 के अनुसार भरण पोषण का एक धर्मनिरपेक्ष (Secular) नियम है. हिंदुओं के भरण-पोषण के नियम उनके निजी कानून में बताए गए हैं, वहीं मुस्लिम व्यक्तिगत कानून में मुसलमानों के भरण पोषण के बारे में प्रावधान किया गया है. भरण पोषण से संबंधित सभी कानून पारिवारिक कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आते हैं

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भरण पोषण के लिए कानून

हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 2 के अनुसार सिख, जैन और बौद्ध सहित सभी हिंदुओं को इस कानून के तहत भरण पोषण पाने का अधिकार है

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हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण पोषण अधिनियम

हिंदू दत्तक ग्रहण (एडॉप्शन) और भरण पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 3 (B) के अनुसार भरण पोषण के तहत निम्नलिखित सुविधाएं शामिल हैं; हर हाल में भोजन, कपड़ा, आवास, शिक्षा, चिकित्सा और उपचार की व्यवस्था उपलब्ध कराना अनिवार्य है. अविवाहित पुत्री है तो उसके विवाह के वक्त आर्थिक सहायता प्रदान करना

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भरण पोषण के प्रकार

कानूनी रूप से भरण पोषण दो प्रकार के होते हैं अस्थायी और स्थायी

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अस्थायी भरण पोषण

यह भरण पोषण तब दिया जाता है जब अदालत में तलाक की कार्य़वाही चल रही होती है. इस तरह के भरण पोषण को अदालत के द्वारा ही दिया जाता है. इसमें दावेदार के रहने के खर्चों के साथ- साथ कोर्ट की प्रक्रिया में होने वाले खर्चों को भी शामिल किया जाता है.

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हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 24

इस कानून के तहत अस्थायी भरण पोषण का दावा किया जाता है. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125(1) का उपयोग भी इस भरण पोषण का दावा करने के लिए किया जा सकता है

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स्थायी भरण पोषण

इस तरह का भरण पोषण तब दिया जाता है जब अदालत की कार्यवाही खत्म हो जाती है. कानून के अनुसार तय राशि को तय समय पर हर माह या किसी निश्चित समय पर दिया जाता है. इसके बारे में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 25 में प्रावधान किया गया है

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कौन कर सकता है भरण पोषण का दावा

पत्नी, बच्चे (वैध और नाजायज बेटे, अविवाहित वैध और नाजायज बेटियां, विवाहित बेटी जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं), अभिभावक (गार्जियन), या अन्य आश्रित

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पढ़ने के लिए धन्यवाद!

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