समलैंगिक विवाह का मामला कैसे पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

My Lord Team

Image Credit: my-lord.in | 12 May, 2023

समलैंगिक विवाह पहले था अपराध

भारत में 2018 तक समलैंगिक संबंधों को आईपीसी की धारा 377 के तहत गैर-कानूनी माना जाता रहा

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आईपीसी की धारा 377

इस धारा के तहत "किसी भी पुरुष, महिला या जानवर के साथ अप्राकृतिक शारीरिक संबंध" को गैरकानूनी और दंडनीय बनाता था

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अपराध की श्रेणी से बाहर

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा ने 2018 में आईपीसी की धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया लेकिन विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिली

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समलैंगिक विवाह पर पहली यचिका

10 साल से रिश्ते में रहें हैदराबाद के गे कपल सुप्रिया चक्रवर्ती और अभय डांग ने सबसे पहले समलैंगिक विवाह को क़ानूनी मान्यता देने के लिए साल 2022 में इस कपल ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया था

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लगभग 20 याचिकाएं दर्ज

इस याचिका के साथ ही देश की अलग-अलग अदालतों में भी करीब 20 याचिकाएं दायर की गईं थी

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याचिकाओं को एक साथ क्लब किया

सुप्रिया चक्रवर्ती की याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने केन्द्र सरकार को नोटिस जारी करने के साथ ही देशभर की याचिकाओं को एक साथ क्लब करते हुए संविधान पीठ को भेजने की बात कही

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3 सदस्यों की पीठ

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 15 फरवरी 2023 तक सभी याचिकाओं पर अपना संयुक्त जवाब दाख़िल करने का निर्देश देते हुए 13 मार्च तक सभी याचिकाओं को एक साथ सूचीबद्ध करने के आदेश दिए. सीजेआई ने इस मामले को 3 सदस्यों की पीठ को सौप ​दिया

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याचिका संविधान पीठ को रेफर

3 सदस्यों की पीठ ने इ मामले को संविधान पीठ का मामला बताते हुए इन याचिकाओं के समलैंगिक विवाह को 'मौलिक मुद्दा' बताते हुए संविधान पीठ को रेफर कर दिया

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मामले पर सुनवाई शुरू

18 अप्रैल 2023 को मुख्य न्यायाधीश डॉ डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले पर सुनवाई शुरू की

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10 दिनों तक मैराथन सुनवाई

पीठ ने अप्रैल माह में 18, 19, 21, 25, 26 और 27 तारीखों में सुनवाई की. वहीं मई माह में 3, 10 और 11 मई को सुनवाई करते हुए कुल 10 दिन तक सुनवाई की है

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समलैंगिक विवाह पर सुनवाई खत्म

सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य की संविधान पीठ 11 मई को सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया

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पांच जजों की पीठ कर रही थी सुनवाई

CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य संविधान में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली, जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल है

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