भारत में 2018 तक समलैंगिक संबंधों को आईपीसी की धारा 377 के तहत गैर-कानूनी माना जाता रहा
Image Credit: my-lord.inइस धारा के तहत "किसी भी पुरुष, महिला या जानवर के साथ अप्राकृतिक शारीरिक संबंध" को गैरकानूनी और दंडनीय बनाता था
Image Credit: my-lord.inसुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा ने 2018 में आईपीसी की धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया लेकिन विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिली
Image Credit: my-lord.in10 साल से रिश्ते में रहें हैदराबाद के गे कपल सुप्रिया चक्रवर्ती और अभय डांग ने सबसे पहले समलैंगिक विवाह को क़ानूनी मान्यता देने के लिए साल 2022 में इस कपल ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया था
Image Credit: my-lord.inइस याचिका के साथ ही देश की अलग-अलग अदालतों में भी करीब 20 याचिकाएं दायर की गईं थी
Image Credit: my-lord.inसुप्रिया चक्रवर्ती की याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने केन्द्र सरकार को नोटिस जारी करने के साथ ही देशभर की याचिकाओं को एक साथ क्लब करते हुए संविधान पीठ को भेजने की बात कही
Image Credit: my-lord.inसुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 15 फरवरी 2023 तक सभी याचिकाओं पर अपना संयुक्त जवाब दाख़िल करने का निर्देश देते हुए 13 मार्च तक सभी याचिकाओं को एक साथ सूचीबद्ध करने के आदेश दिए. सीजेआई ने इस मामले को 3 सदस्यों की पीठ को सौप दिया
Image Credit: my-lord.in3 सदस्यों की पीठ ने इ मामले को संविधान पीठ का मामला बताते हुए इन याचिकाओं के समलैंगिक विवाह को 'मौलिक मुद्दा' बताते हुए संविधान पीठ को रेफर कर दिया
Image Credit: my-lord.in18 अप्रैल 2023 को मुख्य न्यायाधीश डॉ डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले पर सुनवाई शुरू की
Image Credit: my-lord.inपीठ ने अप्रैल माह में 18, 19, 21, 25, 26 और 27 तारीखों में सुनवाई की. वहीं मई माह में 3, 10 और 11 मई को सुनवाई करते हुए कुल 10 दिन तक सुनवाई की है
Image Credit: my-lord.inसुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य की संविधान पीठ 11 मई को सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया
Image Credit: my-lord.inCJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य संविधान में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली, जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल है
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