शाह बानो का कम उम्र में (वर्ष 1932) में निकाह हो गया था, उनका निकाह इंदौर के एक वकील मोहम्मद अहमद खान से हुआ. कुछ साल तक सब कुछ ठीक चलता रहा और दोनों के पांच बच्चे भी हो गए, लेकिन निकाह के करीब 14 साल बाद अहमद खान ने दूसरा निकाह कर लिया
Image Credit: my-lord.inअहमद खान ने शाह बानो को तीन बार तलाक (ट्रिपल तलाक) बोलकर तलाक दे दिया और घर से बेदखल कर दिया. तब खान ने शाह बानो से वादा किया कि वो गुजारा भत्ता के तौर पर हर महीने उसे 200 रुपये देगा, लेकिन कुछ ही महीनों बाद वो इससे मुकर गया
Image Credit: my-lord.in1981 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ के समक्ष रखा गया. मामला करीब चार साल तक चला और सुनवाई के दौरान शाह बानो के पति ने तर्क दिया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत उसने दूसरी शादी की है और पहली पत्नी को गुजारा भत्ता देना उसके लिए अनिवार्य नहीं है
Image Credit: my-lord.inकोर्ट ने कहा कि भले ही शरिया कानून के तहत मुस्लिम पुरुष पत्नी को केवल इद्दत पीरियड के दौरान ही गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य है, लेकिन सेक्युलर क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के तहत उसे तलाकशुदा पत्नी को तब तक गुजारा भत्ता देना होगा जब तक कि वह फिर से शादी नहीं कर लेती है
Image Credit: my-lord.inसुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत महसूस होती है, जिस पर सरकार को विचार करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 हर धर्म और जाति के लोगों पर लागू होती है, जिसमें मुस्लिम भी शामिल हैं
Image Credit: my-lord.inराजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम महिला (अधिकार और तलाक संरक्षण) विधेयक 1986 लेकर आई जिसके उपरांत सुप्रीम कोर्ट का फैसला शून्य हो गया
Image Credit: my-lord.inइस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं और या उन लोगों के अधिकारों की रक्षा करना था, जो अपने पति से तलाक ले चुकी हैं
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