बच्चे और मानसिक रोगी भी दे सकते हैं कोर्ट में गवाही

My Lord Team

Image Credit: my-lord.in | 21 Feb, 2023

सबूत और गवाह

किसी भी न्यायिक कार्यवाही में दो चीजों के बल पर फैसले लिये जाते हैं पहला सबूत और दूसरा गवाह, जो अदालत की मदद करता है सही फैसला लेने में.

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भारतीय साक्ष्य अधिनियम

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 118, में बताया गया है कि कौन अदालत में गवाही देने के लिए सक्षम है और कौन नहीं है.

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कौन गवाही दे सकता है

बच्चा, मानसिक रोगी, शारीरीक रोगी, पूछे गए प्रश्न को समझने या बताने में असमर्थ हो तो ऐसे लोगों के अलावा कोई भी अदालत में गवाही दे सकता है.

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बाल गवाहों की योग्यता

जब कोर्ट को लगे कि बच्चा सवालों के जवाब देने में सक्षम है तब कोई बच्चा गवाही दे सकता है. साथ ही एक बच्चे की गवाही उसके उम्र पर निर्भर करता है.

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अत्यधिक वृद्धावस्था

अत्यधिक वृद्धावस्था के लोगों में स्मृति और स्मरण की क्षमता कम होती है लेकिन अगर कोर्ट इनकी गवाही को मंजूर दे देती है तो इनकी गवाही ली जा सकती है.

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वोयर डायर टेस्ट

वोयर डायर टेस्ट के तहत कोर्ट पता लगाती है कि बच्चा और अत्यधिक वृद्ध लोग प्रश्न का जवाब देने में सक्षम है या नहीं. इसलिए वो टेस्ट के दौरान कुछ सवाल करते हैं.

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दिमागी मरीज की गवाही

अगर अदालत इस बात से संतुष्ट हो कि एक दिमागी रूप से बीमार व्यक्ति भी कोर्ट में सही गवाही दे सकता है तो उसकी गवाही भी मानी जाएगी.

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गूंगे की गवाही

साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 के अनुसार, एक गूंगा व्यक्ति लिखित रूप में या संकेतों द्वारा साक्ष्य दे सकता है. यह खुले न्यायालय में होगा और इसकी वीडियोग्राफी भी की जाएगी.

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