हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट में गिरफ्तार चल रही एक महिला एक्टिविस्ट रेहाना फातिमा को रिहा करते हुए कहा कि हर बार न्यूडिटी को अश्लीलता से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, ये दोनों अलग-अलग हैं
Image Credit: my-lord.inमहिला अधिकार कार्यकर्ता रेहाना फातिमा के खिलाफ बच्चों का यौन शोषण से संरक्षण (POCSO) कानून, किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act) और सूचना एवं प्रौद्योगिकी कानून के तहत मुकदमा चल रहा था
Image Credit: my-lord.inफातिमा ने कुछ महीने पहले अपने बच्चों से अपने अर्धनग्न शरीर पर चित्रकारी करवाते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया था, जिसके बाद कुछ समूहों ने आपत्ति जताते हुए पॉक्सो एक्ट के तहत FIR दर्ज करवाया था
Image Credit: my-lord.inJustice Kauser Edappagath ने कहा कि 33 वर्षीय कार्यकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों के आधार पर किसी के लिए यह तय करना संभव नहीं है कि उनके बच्चों का किसी भी रूप से ‘ऐंद्रिक गतिविधि’ में यौन संतुष्टि के लिए उपयोग हुआ हो. अदालत ने कहा कि उन्होंने बस अपने शरीर को ‘कैनवास’ के रूप में अपने बच्चों को ‘चित्रकारी’ के लिए इस्तेमाल करने दिया था
Image Credit: my-lord.inअदालत ने कहा, ‘‘अपने शरीर के बारे में स्वायत्त फैसले लेने का महिलाओं का अधिकार उनकी समानता और निजता के मौलिक अधिकारों में से एक है. यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजी स्वतंत्रता के तहत आता है’’
Image Credit: my-lord.inफातिमा ने निचली अदालत द्वारा उन्हें आरोपमुक्त करने वाली याचिका खारिज किए जाने को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी
Image Credit: my-lord.inहाई कोर्ट में अपनी अपील में फातिमा ने कहा था कि ‘बॉडी पेंटिंग’ समाज के उस दृष्टिकोण के खिलाफ संदेश था जिसमें सभी मानते हैं कि महिलाओं के शरीर का निर्वस्त्र ऊपरी हिस्सा किसी भी रूप में यौन संतुष्टि या यौन क्रियाओं से जुड़ा हुआ है जबकि पुरुषों के शरीर के निर्वस्त्र ऊपरी हिस्से को इस रूप में नहीं देखा जाता है
Image Credit: my-lord.inफातिमा की दलीलों से सहमति जताते हुए न्यायमूर्ति ने कहा कि कला परियोजना के रूप में बच्चों द्वारा अपनी मां के शरीर के ऊपरी हिस्से को चित्रित करने को ‘‘वास्तविक या किसी भी तरीके की यौन क्रिया के रूप में नहीं देखा जा सकता है, न ही ऐसा कहा जा सकता है कि यह काम (शरीर चित्रित करना) यौन तुष्टि के लिए या यौन संतुष्टि की मंशा से किया गया है’’
Image Credit: my-lord.inन्यायमूर्ति ने कहा कि ऐसी ‘‘निर्दोष कलात्मक अभिव्यक्ति’’ को किसी भी रूप में यौन क्रिया से जोड़ना ‘क्रूर’ था. ‘‘यह साबित करने का कोई आधार नहीं है कि बच्चों का उपयोग पोर्नोग्राफी के लिए किया गया है"
Image Credit: my-lord.inअभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि फातिमा ने वीडियो में अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को निर्वस्त्र दिखाया है, इसलिए यह अश्लील और असभ्य है. हालांकि, इस दलील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि ‘‘नग्नता और अश्लीलता हमेशा पर्यायवाची नहीं होते’’
Image Credit: my-lord.inअदालत ने कहा, ‘‘नग्नता को अनिवार्य रूप से अश्लील या असभ्य या अनैतिक करार देना गलत है.’’ कोर्ट ने कहा एक समय में केरल में निचली जाति की महिलाओं ने अपने स्तन ढकने के अधिकार की लड़ाई लड़ी थी और देश भर में विभिन्न प्राचीन मंदिरों और सार्वजनिक स्थानों पर तमाम देवी-देवताओं की तस्वीरें, कलाकृतियां और प्रतिमाएं हैं जो अर्धनग्न अवस्था में हैं और इन सभी को ‘पवित्र’ माना जाता है
Image Credit: my-lord.inकोर्ट ने कहा कि पुरुषों के शरीर के ऊपरी हिस्से की नग्नता को कभी भी अश्लील या असभ्य नहीं माना जाता है और न हीं उसे यौन तुष्टि से जोड़कर देखा जाता है लेकिन ‘‘एक महिला के शरीर के साथ उसी रूप में बर्ताव नहीं होता है’’
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