IPC की धारा 303 क्यों है असंवैधानिक?

My Lord Team

Image Credit: my-lord.in | 01 Aug, 2023

Mithu Vs State of Punjab

इस ऐतिहासिक मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय की 5 न्यायाधीशों की पीठ ने IPC की धारा 303 को असंवैधानिक करार दिया। इस मामले में, याचिकाकर्ता मिठू ने इस धारा को चुनौती दी थी जिसके तहत 'आजीवन कारावास की सजा भुगतते हुए हत्या करने वाले व्यक्ति को अनिवार्य मृत्युदंड की सजा का प्रावधान करती है

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संविधान के इन अनुच्छेदों का उल्लंघन

इस मामले में यह माना गया कि IPC की धारा 303 अनुच्छेद 14 के तहत बताए गए समानता और अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए अधिकारों का उल्लंघन करती है। विस्तार से जानते हैं कि क्या था मामला

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क्या है IPC की धारा 303?

इस धारा के अनुसार, जो व्यक्ति आजीवन कारावास की सजा से दण्डित है, यदि इस सजा के अधीन रहने के दौरान वह एक और हत्या करता है तो उसे मृत्युदण्ड से दण्डित किया जाएगा। यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है

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IPC के सभी अपराधों में धारा शामिल

आईपीसी के तहत सभी 51 अपराधों पर समान रूप से लागू थी जिसमें राजद्रोह और जालसाजी (Conspiracy) जैसे अपराध भी शामिल हैं। इन अपराधों के तहत दोषियों को आजीवन कारावास की सजा काटते समय हत्या करने की स्थिति में अनिवार्य मृत्युदंड का प्रावधान था

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Reasonable Classification Test

अदालत ने यह जांचने के लिए 'Reasonable Classification Test' का उपयोग किया कि क्या धारा 303 अनुच्छेद 14 के अनुरूप है, और इसके लिए एक आयोग का भी गठन किया गया ताकि कुछ सवालों पर राय मिल सके

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42nd Law Commission के समक्ष सवाल

इस आयोग के समक्ष पहला प्रश्न यह था कि क्या हत्या करने वाले आजीवन दोषियों और गैर-आजीवन दोषियों के बीच अंतर करने का कोई आधार है? दूसरा यह कि क्या यह भेदभाव पहले मामले में मृत्युदंड को अनिवार्य और बाद में वैकल्पिक बनाता है? और तीसरा कि क्या ऐसे वर्गीकरण और कानून के उद्देश्य के बीच कोई तर्कसंगत संबंध है?

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Law Commission रिपोर्ट

इस आयोग के अनुसार, यह धारा केवल एक वर्ग के मामलों को ध्यान में रखते हुए बनाई गई थी, जिसमें आजीवन कारावास की सजा पाने वाला व्यक्ति किसी की जेल में हत्या करता है। यह ऐसे उदाहरण देता है जहां जेल के अंदर या पैरोल पर बाहर जीवन-यापन करने वाला अपराधी स्थिति की गंभीरता के कारण गंभीर और अचानक उकसावे में किसी की हत्या कर सकता है।

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आयोग ने आगे स्पष्ट किया

आयोग ने बताया की यह आधार स्पष्ट रूप से धारा 303 की अतिसमावेशी प्रकृति (Ultra Inclusive Nature) को दर्शाता है। अतिसमावेशिता एक ऐसा आधार है जिस पर वर्गीकरण तर्कसंगत सांठगांठ परीक्षण में असफल हो सकता है, जैसा कि नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ के मामले में स्वीकार किया गया था

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बाद के निर्णयों पर प्रभाव

मिठू बनाम पंजाब राज्य का मामला एक मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने 1983 में आईपीसी की धारा 303 के तहत अनिवार्य मौत की सजा को संविधान का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया

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पढ़ने के लिए धन्यवाद!

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