Summon Trial की क्या है कानूनी प्रक्रिया?

My Lord Team

Image Credit: my-lord.in | 10 Aug, 2023

न्यायालय का लिखित आदेश

जब कोई अपराध घटित होता है तब पुलिस अन्वेषण की कार्यवाई के दौरान किसी आरोपी से पुछताछ करने के आशय से आरेपी को पुलिस थाने या किसी निश्चित स्थान पर आने को कहती है और आरोपी नहीं आता तो फिर पुलिस आरोपी को बुलाने के लिए कानूनी कार्यवाही का सहारा लेती है, और फिर वो crpc 1973 की धारा 251 के तहत उसे न्यायालय से एक लिखित आदेश की आवश्यकता होती है

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समन की परिभाषा

न्यायालय द्वारा जारी लिखित आदेश को ही समन के रुप में जाना जाता है, समन एक दस्तावेज है जो एक व्यक्ति को अदालत के सामने पेश होने और उसके खिलाफ की गई शिकायत का जवाब देने का आदेश देता है। मजिस्ट्रेट द्वारा crpc 1973 की धारा 204(1)(A) के तहत आरोपी को समन जारी किया जाता है

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IPC की धारा 251

इस धारा का उद्देश्य केवल यह है कि आरोपी व्यक्ति को उस अपराध के विवरणों से अवगत कराना है, जो उसके खिलाफ आरोप लगाया गया है। यह केवल उससे पूछताछ करना है कि क्या वह दोषी है या उसके पास खुद के बचाव के लिए कोई दलील है।

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दोष की स्वीकृति पर दोषसिद्धि

न्यायालय धारा 252 और 253 के तहत दोषी के द्वारा दोष की स्वीकृति पर दोषसिद्धि प्रदान करती है। यदि आरोपी अपना दोष स्वीकार करता है, तो न्यायालय के विवेक पर दोषी ठहराया जा सकता है, और यदि नकारात्मक जवाब आता है तो अदालत को धारा 254 के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है

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बचाव पक्ष की सुनवाई

धारा 254 के तहत अभियोजन के साक्ष्य लेने और धारा 313 के तहत बचाव पक्ष की जांच के बाद, अदालत धारा 254 (1) के तहत बचाव पक्ष के विचारण के साथ आगे बढ़ेगी। बचाव पक्ष के विचारण में आरोपी से अभियोजन पक्ष के साक्ष्य के विरुद्ध साबित करने के लिए कहा जाएगा। किसी भी मामले में आरोपी की सुनवाई में विफलता आपराधिक मुकदमे में मौलिक त्रुटि होगी

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शिकायतकर्ता का उपस्थित न होना

धारा 256 के तहत आरोपी की उपस्थिति के लिए निर्धारित तिथि पर, शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति अदालत को आरोपी को बरी करने का अधिकार देती है । शिकायतकर्ता की मृत्यु के मामले में भी धारा 256(1) लागू होती है। यदि मृत शिकायतकर्ता का representative- 15 दिनों तक उपस्थित नहीं होता है, जहां प्रतिवादी पेश हुआ, तो प्रतिवादी को न्यायालय द्वारा बरी किया जा सकता है

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समन मामलों में कार्यवाही पर रोक

धारा 258 के तहत किसी भी स्तर पर प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देती है कि वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी के साथ कार्यवाही को रोक सके। इसलिए यदि वह ‘सबूत को रिकॉर्ड करने के बाद’ कार्यवाही को रोक देते है, तो यह बरी होने के फैसले की घोषणा होगी, और यदि वह मामले में ‘सबूत को रिकॉर्ड करने से पहले’ रोक देते है, तो यह माना जाएगा की मामले को रोक दिया गया है

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पढ़ने के लिए धन्यवाद!

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