क्यूरेटिव पिटीशन विशेष परिस्थितियों में ही दायर किए जाते हैं, जब इस बात की संभावना हो कि केस से जुड़ा कोई अहम तथ्य नजरअंदाज हो गया हो या छूट गया हो.
Source: my-lord.inहमारा संविधान किसी आरोपी व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद भी अपने फैसले की समीक्षा कराने के पर्याप्त मौके देता है.
Source: my-lord.inक्यूरेटिव पिटीशन तब दाखिल की जाती है, जब किसी मुजरिम की राष्ट्रपति के पास भेजी गई दया याचिका और सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका खारिज हो गई हो.
Source: my-lord.inऐसे में क्यूरेटिव पिटीशन उस मुजरिम के पास मौजूद अंतिम मौका होता है, जिसके ज़रिए वह अपने लिए सुनिश्चित की गई सज़ा में राहत की गुहार लगा सकता है.
Source: my-lord.inभारतीय संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत इसकी गारंटी है; जिसके अनुसार, शीर्ष अदालत को अपने द्वारा सुनाए गए किसी भी फैसले या दिए गए आदेश की समीक्षा करने का अधिकार है.
Source: my-lord.inक्यूरेटिव पिटीशन की अवधारणा 2002 में रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा और एक अन्य मामले में अस्तित्व में आई.
Source: my-lord.inयह एक तलाक का मामला था जो तलाक के आदेश की वैधता पर सवाल उठाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया. रूपा अशोक हुर्रा ने आपसी सहमति से तलाक की अनुमति वापस ले ली.
Source: my-lord.inसुप्रीम कोर्ट केवल तभी उपचारात्मक याचिका पर विचार करने के लिए सहमत होता है जब पीड़ित व्यक्ति यह साबित कर सकता है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है.
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