सुप्रीम कोर्ट के दस ऐतिहासिक फैसले, जिसने भारतीय समाज की दिशा बदल दी 

Satyam Kumar

Image Credit: my-lord.in | 30 Jul, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों को संरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं. आज हम उन्ही दस फैसलो का संक्षिप्त परिचय देने जा रहे हैं.

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केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) : इस मामले ने मूल संरचना सिद्धांत को स्थापित किया, जिसमें निर्णय दिया गया कि यद्यपि संसद के पास व्यापक शक्तियां हैं, फिर भी वह संविधान के मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती.

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मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) की व्याख्या का विस्तार किया और कहा कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया निष्पक्ष, न्यायसंगत और उचित होनी चाहिए.

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विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997): इस मामले में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किए गए, जिन्हें विशाखा दिशानिर्देश के रूप में जाना जाता है, जिसके बाद कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 पारित हुआ.

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आई.आर. कोलोहो बनाम तमिलनाडु राज्य (2007): देश के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि नौवीं अनुसूची न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं आती है. यदि संघ या राज्य द्वारा बनाया गया कोई भी कानून, यदि वह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करने वाला कोई भी विधेयक भारत के संविधान के दायरे में प्रारम्भ से ही अमान्य माना जाएगा.

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नाज फाउंडेशन बनाम दिल्ली सरकार (2009): इस मामले ने वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक कृत्यों को अपराध से मुक्त कर दिया, हालांकि बाद में इसे 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने पलट दिया. हालांकि, इसने 2018 में अंततः इसे अपराध से मुक्त करने के लिए मंच तैयार किया.

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न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ (2017): इस ऐतिहासिक निर्णय ने भारतीय संविधान के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी.

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शायरा बानो बनाम भारत संघ (2017): इस निर्णय ने तत्काल तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की प्रथा को असंवैधानिक घोषित किया, जो मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था.

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इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य (2018): इस मामले ने सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी, जिससे महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करने वाली पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं को चुनौती मिली.

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एम. सिद्दीक (डी) थ्री एलआरएस बनाम महंत सुरेश दास एवं अन्य (अयोध्या फैसला) (2019): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने लंबे समय से चले आ रहे अयोध्या भूमि विवाद को सुलझा दिया, विवादित भूमि को राम मंदिर के निर्माण के लिए दे दिया और मस्जिद के लिए एक वैकल्पिक स्थल प्रदान किया.

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सुप्रीम कोर्ट ने उपरोक्त जजमेंट से भारतीय समाज की दिशा- दशा तय की है.

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पढ़ने के लिए धन्यवाद!

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