हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवाद का निपटारा करते हुए पति को पत्नी को परमानेंट सेटलमेंट करने पर दो करोड़ रूपये गुजारा भत्ते देने के आदेश दिए है.
Image Credit: my-lord.inसुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता तय करने को लेकर कहा कि भरण-पोषण या स्थायी गुजारा भत्ता दंडात्मक नहीं होना चाहिए, बल्कि पत्नी के लिए एक सभ्य जीवन स्तर सुनिश्चित करने के उद्देश्य से होना चाहिए.
Image Credit: my-lord.inसुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गुजारा भत्ता तय करने को लेकर संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली विवेकाधिकार की शक्ति और रजनेश बनाम नेहा एवं अन्य मामले का जिक्र किया.
Image Credit: my-lord.inसंविधान की अनुच्छेद 142 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र के अनुसार वैसे आदेश दे सकता है जो किसी मामले में पूर्ण न्याय के लिए आवश्यक हो.
Image Credit: my-lord.inवहीं वैवाहिक विवाद के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रजनेश बनाम नेहा एवं अन्य मामले में दिए अपने पुराने फैसले को आधार बनाया.
Image Credit: my-lord.inसुप्रीम कोर्ट ने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि स्थायी गुजारा भत्ता का उद्देश्य उद्देश्य दूसरे पति या पत्नी को दंडित करने के बजाय, विवाह की विफलता के कारण आश्रित पति या पत्नी को निराश्रित होने से बचाना है.
Image Credit: my-lord.inन्यायालय इस बात पर जोर देता है कि भरण-पोषण राशि की गणना के लिए कोई निश्चित फॉर्मूला नहीं है; इसके बजाय, इसे विभिन्न कारकों के संतुलित विचार पर आधारित होना चाहिए;
Image Credit: my-lord.ini) दोनों पक्षों (पति-पत्नी) की सामाजिक और वित्तीय स्थिति ii) पत्नी और आश्रित बच्चों की उचित जरूरतें iii) पक्षों की योग्यता और रोजगार की स्थिति iv) पक्षों के स्वामित्व वाली स्वतंत्र आय या संपत्ति v) वैवाहिक घर जैसा जीवन स्तर बनाए रखना vi) पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के लिए किए गए किसी भी रोज़गार का त्याग vii) गैर-कामकाजी पत्नी के लिए उचित मुकदमेबाज़ी का खर्च vii) पति की वित्तीय क्षमता, उसकी आय, भरण-पोषण की ज़िम्मेदारियाँ और देनदारियां
Image Credit: my-lord.inउपरोक्त बिंदुओं पर विचार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत इस न्यायालय की शक्ति का प्रयोग करते हुए तलाक का आदेश दिया.
Image Credit: my-lord.inवहीं एकमुश्त गुजारा भत्ते को तय करने को लेकर पति को 2 करोड़ राशि देने के निर्देश दिए हैं. पत्नी को ये राशि देने के लिए पति को चार महीने का समय भी दिया गया है.
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