आमतौर पर F.I.R. होने को ही लोग आरोप मान लेते हैं. लेकिन क्रमिनल प्रोसीजर कोड(CrPC) के अनुसार कोर्ट ही आरोपों को तय करती है.
Image Credit: my-lord.inFraming of Charges का हिंदी में अर्थ आरोप को तय करना होता है. आरोप तय करने का अर्थ किसी विशिष्ट आरोप को तय करना होता है.
Image Credit: my-lord.inसीआरपीसी की धारा 212 Framing of Charges से संबंधित हैं. यह धारा आरोप तय करने के तरीकों को बताती है.
Image Credit: my-lord.inआरोप में अपराध का समय, जगह और घटना में शामिल व्यक्ति का स्पष्ट विवरण होना चाहिए. विवरण ऐसा हो कि अपराध का पता चलें. आरोपी लगाए आरोप स्पष्ट रूप से साबित हो.
Image Credit: my-lord.inइन आरोपों को अपराध माना जाएगा. वहीं, कुछ मामलें जैसे- विश्वासघात, धन (चल या अचल) बेईमानी के मामलों में सटीक दिन (तारीख) बताए बिना, कुल राशि या संपत्ति का उल्लेख करना जरूरी है.
Image Credit: my-lord.inसीआरपीसी काअध्याय XVII आरोप तय करने की प्रक्रिया के बारे में बताता है. इन अध्यायों में आरोप की सामग्री, समय, स्थान और शामिल व्यक्तियों के बारे में विवरण और अपराध करने के तरीके जैसे विभिन्न बिंदुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है.
Image Credit: my-lord.inCrPC के अनुसार, अदालत Framing of Charges करती है. प्राथमिकी दर्ज करने के बाद केस की जांच होती है. केस में एक जांच अधिकारी (I.O) नियुक्त होता है.
Image Credit: my-lord.inजांच अधिकारी पुलिस दल में से ही कोई एक होतें है. पुलिस जांच पूरी कर अदालत को चार्जशीट देती है.
Image Credit: my-lord.inपुलिस के चार्जशीट देने के बाद कोर्ट Framing of Charges की प्रक्रिया पूरी करती है.
Image Credit: my-lord.inधारा 214: आरोप में शब्दों की व्याख्या उस कानून के आधार पर की जाती है जिसके तहत अपराध दंडनीय है. धारा 215 आरोप तय करने में त्रुटियों के प्रभावों पर चर्चा करती है.
Image Credit: my-lord.inवहीं, धारा 216 अदालत को मुकदमे के दौरान आरोप बदलने और जरूरत पड़ने पर गवाहों को वापस बुलाने की अनुमति देती है. धारा 218 अलग-अलग अपराधों के लिए अलग-अलग आरोप तय करने पर जोर देती है.
Image Credit: my-lord.inमोटे तौर पर, Framing of Charges की प्रक्रिया मुकदमे की रूपरेखा तैयार करती है. मुकदमे को आगे बढ़ाने और आरोपी के उपर लगे आरोपों को स्पष्ट करता है.
Image Credit: my-lord.inपढ़ने के लिए धन्यवाद!