सामान्य तौर पर जब कोई व्यक्ति किसी अपराध में गिरफ्तार किया जाता है और अन्वेषण के प्रथम चरण में यह पाया जाता है कि उस व्यक्ति के विरुद्ध कोई अपराधिक मामला नहीं बनता है तो पुलिस न्यायालय में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करती है
Image Credit: my-lord.inक्लोजर रिपोर्ट एक रिपोर्ट है जो पुलिस या जांच एजेंसियों द्वारा मजिस्ट्रेट या संबंधित अदालत को सौंपी जाती है, जिसमें कहा गया है कि आरोपी के खिलाफ उचित जांच के बाद, उसे कथित अपराध से जोड़ने के लिए कोई सबूत या संदेह का उचित आधार नहीं मिला और यदि अभियुक्त हिरासत में है, तो उसे रिपोर्ट दर्ज करने के बाद कुछ शर्तों पर रिहा किया जाएगा
Image Credit: my-lord.inइसका मुख्य उद्देश्य यह है कि यदि आरोपी के खिलाफ जांच की गई है और कुछ भी आपत्तिजनक या ऐसी कोई सामग्री/ सबूत नहीं मिला है जो आरोपी को कथित अपराध से जोड़ सके, तो उस पर अनावश्यक रूप से मुकदमा चलाने का कोई मतलब नहीं है। यह प्रावधान ऐसे आरोपी को, जिसके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है, अनुचित और अवांछित अभियोजन चलाने से रोकता है
Image Credit: my-lord.inनिष्पक्ष जांच के लिए पुलिस को सभी सबूतों की गहन जांच करनी होती है और यह पता लगाना होता है कि आरोपी के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया (prima facie) मामला बनता है या नहीं; यदि की गई प्रारंभिक जांच से प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है, तो CrPC Section 169 के तहत एक क्लोजर रिपोर्ट बनाई जाएगी
Image Credit: my-lord.inक्लोजर रिपोर्ट CrPC Section 169 के तहत दायर की जाती है, जबकि अंतिम रिपोर्ट (final chargesheet) CrPC Section 173 के तहत दायर की जाती है। क्लोजर रिपोर्ट केवल जांच के समापन पर बनाई जाती है, आरोपी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलता है तो कोई केस नहीं बनता; जबकि एक अंतिम रिपोर्ट में पाए गए सभी सबूतों, विभिन्न बयानों सहित पूरी जांच का विवरण उसमें किया जाता है
Image Credit: my-lord.inअगर पुलिस को आरोपी के खिलाफ उचित जांच के बाद, उसे कथित अपराध से जोड़ने के लिए कोई सबूत या संदेह का उचित आधार नहीं मिलता और यदि अभियुक्त हिरासत में है, तो उसे रिपोर्ट दर्ज करने के बाद कुछ शर्तों पर रिहा किया जाएगा जैसे कि एक बांड निष्पादित करना, एक ज़मानत प्रदान करना, बुलाए जाने पर मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित होना आदि
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