कोर्ट के बाहर भी सुलझा सकते हैं अपना मामला

My Lord Team

Image Credit: my-lord.in | 16 Jan, 2023

मध्यस्थता के बारे में

भारत में बढ़ती जनसंख्या के साथ पारिवारिक विवाद और आपसी विवाद भी बढ रहें है. इस तरह के विवादों को अदालत में सुलझाने में एक लंबा समय लगता हैं, इसलिए मध्यस्थता का गठन किया गया, ताकि इसका जल्दी फैसला लिया जा सके।

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क्या है मध्यस्थता

मध्यस्थता एक ऐसी प्रक्रिया है जहां दो पक्षों के बीच हुए विवाद को तीसरा पक्ष न्यायालय के बाहर सुलझाता है या सुलझाने की कोशिश करता है. इसमें पारिवारिक ​मामले से लेकर अब कई व्यापारिक मामले भी शामिल है। मध्यस्थता अधिकतम 3 बार और 180 दिनों के भीतर पूरा किया जा सकता है. कई बार अदालतें खुद भी मध्यस्था का आदेश देते है. तो कई बार पक्षकार भी इसके लिए अनुरोध कर सकते है.

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मध्यस्थता के प्रकार

भारत में दो प्रकार की मध्यस्थता होती है. कोर्ट द्वारा समझाइश के लिए मध्यस्थ के पास भेजे गए मामले में शामिल होते है तो वही निजी तौर पर मध्यस्थता का आवेदन करने वाले मामले प्राइवेट मीडीएशन में शामिल होते है.

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इस धारा के तहत होती है मीडिएशन

कोर्ट द्वारा भेजे गये मीडीएशन- कोर्ट किसी भी सिविल केस को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के धारा 89 के तहत मीडीएशन के लिए भेज सकते है.

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मीडिएशन के लिए यहां भेज सकती है कोर्ट

मीडीएशन के लिए डिस्ट्रिक्ट कोर्ट केस को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में, हाई कोर्ट राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में और सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण में भेज सकते है. इस तरह के मामलों में मध्यस्थता के लिए मध्यस्थ को DLSA, SLSA या NALSA द्वारा 40 घंटो का प्रशिक्षण देने के बाद नियुक्त किया जाता है.

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अपील नहीं कर सकते

मध्यस्थता में सभी पक्षकारों की आपसी सहमती के आधार पर फैसला लिया जाता है। अगर एक बार मध्यस्थता ने आदेश या अवार्ड पारित कर दिया गया है तो सभी पक्षों के लिए इसे स्वीकार करना बाध्यता है. इसके बाद फिर किसी भी अदालत में इस मामले पर अपील नहीं किया जा सकता है. अपील केवल तभी कर सकते हैं जब मध्यस्थता में किसी प्रकार की खामी रही हो या फिर कोई गलत तथ्य पेश किया गया हो.

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क्या है Private Meditation

इस मध्यस्थता के लिए मध्यस्थ और मध्यस्थता सेंटर को शुल्क देना पड़ता है. इस तरह की मध्यस्थता के लिए कोई भी व्यक्ति मध्यस्थता सेंटर में आवेदन देकर मध्यस्थता के लिए जा सकता है. इसमें ज्यादातर कंपनी के केस होते हैं। प्राइवेट मीडीएशन सेंटर में जो भी फैसला होता है वह बाध्य नहीं होता है और इसके खिलाफ कोर्ट में जाया जा सकता है.

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पारिवारिक और कंपनी मामलों की मध्यस्थता

पारिवारिक विवादों को विधिक सेवा समिति द्वारा की जाती है, जिसमें मध्यस्थ के रूप में कोई अधिवक्ता, पूर्व जज, प्रोफ़ेसर, कोई समाज सेवक या कोई और व्यक्ति जिनका रुचि एवं ज्ञान परिवार मामलों में रहा हो और लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा 40 घंटो का प्रशिक्षण प्राप्त है वह मध्यस्थता बन सकते है. कंपनी मामलों के मीडिएशन में लीगल सर्विस अथॉरिटी के पास करवा सकते है. कोई चार्टर्ड अकाउंटेंट, कम्पनी सेक्रेटरी, कॉर्पोरेट अधिवक्ता, कंपनी से संबंधित प्रोफेसर या कोई और व्यक्ति जिनका रुचि एवं ज्ञान कंपनी मामलों में है वह मध्यस्थ बन सकते है.

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पढ़ने के लिए धन्यवाद!

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