भारत में बढ़ती जनसंख्या के साथ पारिवारिक विवाद और आपसी विवाद भी बढ रहें है. इस तरह के विवादों को अदालत में सुलझाने में एक लंबा समय लगता हैं, इसलिए मध्यस्थता का गठन किया गया, ताकि इसका जल्दी फैसला लिया जा सके।
Image Credit: my-lord.inमध्यस्थता एक ऐसी प्रक्रिया है जहां दो पक्षों के बीच हुए विवाद को तीसरा पक्ष न्यायालय के बाहर सुलझाता है या सुलझाने की कोशिश करता है. इसमें पारिवारिक मामले से लेकर अब कई व्यापारिक मामले भी शामिल है। मध्यस्थता अधिकतम 3 बार और 180 दिनों के भीतर पूरा किया जा सकता है. कई बार अदालतें खुद भी मध्यस्था का आदेश देते है. तो कई बार पक्षकार भी इसके लिए अनुरोध कर सकते है.
Image Credit: my-lord.inभारत में दो प्रकार की मध्यस्थता होती है. कोर्ट द्वारा समझाइश के लिए मध्यस्थ के पास भेजे गए मामले में शामिल होते है तो वही निजी तौर पर मध्यस्थता का आवेदन करने वाले मामले प्राइवेट मीडीएशन में शामिल होते है.
Image Credit: my-lord.inकोर्ट द्वारा भेजे गये मीडीएशन- कोर्ट किसी भी सिविल केस को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के धारा 89 के तहत मीडीएशन के लिए भेज सकते है.
Image Credit: my-lord.inमीडीएशन के लिए डिस्ट्रिक्ट कोर्ट केस को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में, हाई कोर्ट राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में और सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण में भेज सकते है. इस तरह के मामलों में मध्यस्थता के लिए मध्यस्थ को DLSA, SLSA या NALSA द्वारा 40 घंटो का प्रशिक्षण देने के बाद नियुक्त किया जाता है.
Image Credit: my-lord.inमध्यस्थता में सभी पक्षकारों की आपसी सहमती के आधार पर फैसला लिया जाता है। अगर एक बार मध्यस्थता ने आदेश या अवार्ड पारित कर दिया गया है तो सभी पक्षों के लिए इसे स्वीकार करना बाध्यता है. इसके बाद फिर किसी भी अदालत में इस मामले पर अपील नहीं किया जा सकता है. अपील केवल तभी कर सकते हैं जब मध्यस्थता में किसी प्रकार की खामी रही हो या फिर कोई गलत तथ्य पेश किया गया हो.
Image Credit: my-lord.inइस मध्यस्थता के लिए मध्यस्थ और मध्यस्थता सेंटर को शुल्क देना पड़ता है. इस तरह की मध्यस्थता के लिए कोई भी व्यक्ति मध्यस्थता सेंटर में आवेदन देकर मध्यस्थता के लिए जा सकता है. इसमें ज्यादातर कंपनी के केस होते हैं। प्राइवेट मीडीएशन सेंटर में जो भी फैसला होता है वह बाध्य नहीं होता है और इसके खिलाफ कोर्ट में जाया जा सकता है.
Image Credit: my-lord.inपारिवारिक विवादों को विधिक सेवा समिति द्वारा की जाती है, जिसमें मध्यस्थ के रूप में कोई अधिवक्ता, पूर्व जज, प्रोफ़ेसर, कोई समाज सेवक या कोई और व्यक्ति जिनका रुचि एवं ज्ञान परिवार मामलों में रहा हो और लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा 40 घंटो का प्रशिक्षण प्राप्त है वह मध्यस्थता बन सकते है. कंपनी मामलों के मीडिएशन में लीगल सर्विस अथॉरिटी के पास करवा सकते है. कोई चार्टर्ड अकाउंटेंट, कम्पनी सेक्रेटरी, कॉर्पोरेट अधिवक्ता, कंपनी से संबंधित प्रोफेसर या कोई और व्यक्ति जिनका रुचि एवं ज्ञान कंपनी मामलों में है वह मध्यस्थ बन सकते है.
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