उड़ीसा उच्च न्यायालय ने हाल ही में टिप्पणी की है कि किसी भी महिला के लिए मातृत्व अवकाश (Maternity leave) एक मूल मानवाधिकार है और कोई भी संस्थान अगर उसे यह अवकाश देने से मना करता है, तो ये महिला की गरिमा पर हमला करने के बराबर होगा
Image Credit: my-lord.inउड़ीसा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सशिकांत मिश्रा ने यह बात एक अध्यापिका की याचिका की सुनवाई के दौरान कही है। याचिकाकर्ता ओडिशा के क्योंझर जिले के एक गर्ल्स स्कूल में पढ़ाती हैं। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि 'मातृत्व अवकाश' की बराबरी किसी भी दूसरे अवकाश के साथ नहीं की जा सकती है क्योंकि हर महिला कर्मचारी के लिए यह एक अंतर्निहित अधिकार (Inherent Right) है
Image Credit: my-lord.inअदालत ने कहा है कि मटर्निटी लीव न देने का फैसला करना निरर्थक और बेतुका होगा, यह प्रकृति की प्रक्रिया का विरोध करने के बराबर होगा। एक महिला को अगर इस मूल मानवाधिकार से वंचित रखा जाता है तो ये उनकी गरिमा का हनन करना होगा
Image Credit: my-lord.inअदालत ने कहा कि गरिमा का हनन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए जीवन का मौलिक अधिकार (Fundamental Right to Life) का उल्लंघन होगा। इस मौलिक अधिकार की व्याख्या गरिमा के साथ जीवन के रूप में की गई है
Image Credit: my-lord.inउड़ीसा हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन को भी अपने जजमेंट का आधार बनाया है जो 'Municipal Corporation of Delhi Vs Female Workers (Muster Roll) and another' मामले में दिया गया था
Image Credit: my-lord.inइस मामले में शीर्ष न्यायालय का मानना था कि महिलायें हमारे समाज का लगभग आधा हिस्सा होती हैं इसलिए उनकी इज्जत की जानी चाहिए और जिन जगहों पर वो आजीविका कमाने हेतु जाती हैं, वहां उनके साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिए
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