हाई कोर्ट जज के खिलाफ 'महाभियोग' लाने से जुड़े सभी प्रविधान

Satyam Kumar

Image Credit: my-lord.in | 21 Mar, 2025

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की मुश्किलें बढ़ती दिखाई पड़ रही है, अब तो सप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ इन-हाउस जांच शुरू कर दिया है.

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वहीं, बीते दिन कॉलेजियम की बैठक की सिफारिश के बाद आज राज्यसभा में जस्टिस के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाने को सांसदों ने पत्र लिखा है.

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बता दें कि अगर अनैतिक गतिविधि में पकड़े जाने पर जज अगर खुद इस्तीफा नहीं देते हैं, तो संसद उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कर सकती है.

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आइये जानते हैं महाभियोग की बारीकियों की, जिसके सहारे किसी जज को नौकरी से बर्खास्त किया जा सकता है?

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संविधान के आर्टिकल 124 (4) में सुप्रीम कोर्ट जज और आर्टिकल 217 में हाई कोर्ट के जजों को हटाने के प्रक्रिया का जिक्र है. इस आर्टिकल के अनुसार जज को महाभियोग के सहारे ही हटाया जा सकता है.

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महाभियोग प्रस्ताव को किसी भी सदन में लाया जा सकता है, लेकिन लोकसभा में इसे पेश करने के लिए न्यूनतम 100 और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं.

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यदि सदन के स्पीकर या अध्यक्ष प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं (या अस्वीकार भी कर सकते हैं), तो दोनों सदनों के अध्यक्ष मिलकर तीन सदस्यों की एक समिति का गठन कर सकते हैं, जो न्यायाधीश पर लगाए गए आरोपों की जांच करेगी.

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इस समिति में एक सुप्रीम कोर्ट का जज, एक हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस, और एक कानून विशेषज्ञ शामिल होते हैं. पूर्ण जांच के बाद, यह समिति अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष या स्पीकर को सौंपती है, जो उसे अपने सदन में प्रस्तुत करते हैं.

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यदि किसी पदाधिकारी को दोषी पाया जाता है, तो सदन में मतदान कराया जाता है. प्रस्ताव को पारित करने के लिए सदन के कुल सांसदों का बहुमत या मतदान करने वाले सांसदों में से दो तिहाई से अधिक का समर्थन आवश्यक है.

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किसी जज को हटाने का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास होता है, इसलिए दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद जज को उनके पद से हटाया जाता है.

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पढ़ने के लिए धन्यवाद!

Next: हाई कोर्ट जज को हटाने में 'सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम' की भूमिका

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