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YPS चौक से प्रदर्शनकारियों को हटाने के HC के फैसले को चुनौती, याचिका पर SC ने पंजाब सरकार से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट.

सुप्रीम कोर्ट ने वाईपीएस चौक से प्रदर्शनकारियों को हटाने के पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर पंजाब सरकार से जवाब मांगा है.

Written by Satyam Kumar |Published : July 20, 2024 4:02 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पंजाब सरकार और अन्य से उस याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा, जिसमें पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा पंजाब राज्य और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को चंडीगढ़ और मोहाली वाईपीएस चौक की सीमा से प्रदर्शनकारियों को हटाने के निर्देश को चुनौती दी गई है.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई, केवी विश्वनाथन और नोंग्मीकापम कोटिस्वर सिंह की पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया और मामले को अन्य समान याचिकाओं के साथ जोड़ दिया.

कोर्ट ने अराइव सेफ सोसाइटी, पंजाब राज्य, पंजाब के पुलिस महानिदेशक, एसएएस नगर मोहाली के डिप्टी कमिश्नर और एसएएस नगर मोहाली के पुलिस अधीक्षक समेत अन्य से जवाब मांगा है.

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याचिकाकर्ता ने कहा,

"यह विशेष अनुमति याचिका चंडीगढ़ में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा पारित दिनांक 9 अप्रैल, 2024 के आदेश को चुनौती देती है, जिसके तहत उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी, पंजाब राज्य और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को निर्देश दिया था कि वे प्रदर्शनकारियों (याचिकाकर्ता समूह) को चंडीगढ़ और एसएएस नगर मोहाली पर अतिक्रमण करने और यातायात प्रवाह को बाधित करने का झूठा आरोप लगाकर बलपूर्वक साइट से हटा दें, जबकि इसके विपरीत सबूत मौजूद हैं."

अंतरिम राहत के तौर पर, याचिका में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा पारित दिनांक 9 अप्रैल, 2024 के आदेश के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई है.

यह याचिका कौमी इंसाफ मोर्चा द्वारा एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड सत्य मित्रा के माध्यम से दायर की गई.

याचिकाकर्ता 'कौमी इंसाफ मोर्चा' एक अपंजीकृत समूह का प्रतिनिधित्व करता है जो चंडीगढ़ और मोहाली वाईपीएस चौक की सीमा पर 1.5 साल से अधिक समय से अहिंसक और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहा है.

प्रदर्शनकारियों को पंजाब सरकार, पंजाब राज्य और भारत संघ द्वारा पंजाब के लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांगों पर ध्यान न देने और रिहा न करने से दुख है, जिसमें आजीवन कारावास की सजा पाए और अपनी सजा पूरी कर चुके सिख कैदियों को रिहा करना शामिल है, लेकिन वे 20 साल से अधिक समय से जेलों में बंद हैं. इस कारण से, 'कौमी इंसाफ मोर्चा' के बैनर तले अपंजीकृत समूह, जिसमें जेल में बंद कैदियों के परिवार के सदस्य और नागरिक समाज के अन्य संबंधित सदस्य शामिल हैं, ने उन कैदियों की रिहाई और उनकी समयपूर्व रिहाई, पैरोल और फरलो आदि पर सुनवाई में तेजी लाने की मांग करते हुए धरना शुरू किया.

याचिका में कहा गया है,

"सिख राजनीतिक कैदियों की रिहाई की यह लंबे समय से चली आ रही मांग पंजाब के लोगों के लिए एक संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दा रही है. यह आंदोलन शांतिपूर्ण धरने के माध्यम से उन मांगों का प्रतिनिधित्व कर रहा है, जो न तो सार्वजनिक शांति को भंग कर रहा है और न ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(2) में निर्दिष्ट उचित प्रतिबंधों के अंतर्गत आता है."

पंजाब राज्य और भारत संघ के प्रदर्शनकारियों की मांग है कि गुरदीप सिंह खेड़ा (31 साल से अधिक जेल में) और देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर (26 साल से अधिक जेल में) की समयपूर्व रिहाई के मामलों को शीघ्र और सकारात्मक निपटान के लिए संबंधित सरकारों के समक्ष उठाया जाए.

इसमें आगे मांग की गई कि राज्य सरकार और यूटी प्रशासन लखविंदर सिंह (26 साल से अधिक जेल में), गुरमीत सिंह (26 साल से अधिक जेल में), शमशेर सिंह (26 साल से अधिक जेल में) और परमजीत सिंह भियोरा (23 साल से अधिक) के अच्छे आचरण को देखते हुए कानून के अनुसार समयपूर्व रिहाई के मामलों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करें. याचिका में मांग की गई कि गुरदीप सिंह खेड़ा (31 साल से अधिक जेल में) और देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर (26 साल से अधिक जेल में) की समयपूर्व रिहाई के मामलों को शीघ्र और सकारात्मक निपटान के लिए संबंधित सरकारों के समक्ष उठाया जाए.

याचिका में जगतार सिंह हवारा (25 साल से अधिक जेल में) और जगतार सिंह तारा (15 साल से अधिक) के खिलाफ मामलों की सुनवाई जल्द पूरी करने की मांग की गई है. इसके अलावा जगतार सिंह हवारा के लिए जेल को दिल्ली से पंजाब स्थानांतरित करने की मांग की गई है, जो न तो दिल्ली में दोषी है और न ही विचाराधीन है, लेकिन उसे अवैध रूप से दिल्ली की जेल में रखा गया है, जबकि उसके मामले पंजाब राज्य से संबंधित हैं. याचिका में मांग की गई है कि राज्य सरकार बेअदबी के मामलों में सजा बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार के समक्ष मामला उठाए.

इसमें आगे कहा गया है कि प्रदर्शनकारियों की मांगें कानूनी हैं और धरना प्रदर्शन तभी शुरू हुआ जब प्रतिवादी सरकारों ने मोर्चा की मांगों को स्वीकार करने का कोई प्रयास नहीं किया. प्रदर्शनकारी समूह ने शुरू में सिख कैदियों की अन्यायपूर्ण और अवैध कैद के खिलाफ एक विस्तृत ज्ञापन प्रस्तुत किया था, जो अपनी सजा पूरी करने के बाद भी जेलों में सड़ रहे हैं.