हम अक्सर सुनते हैं कि दो घरों में झगड़े होने पर एक घर की महिला ने दूसरे घर के पुरूषों के खिलाफ बलात्कार, यौन संबंध बनाने का प्रयास की शिकायत दर्ज करा दी जाती है. अधिकांशत: मामलों में ये अदालत के सामने सच्चाई निकल कर सामने आ ही जाती है लेकिन इसमें बहुत समय लगता है. प्रतिवादी इन FIR के विरोध में एक अलग FIR करा देते हैं और मुकदमे की तैयारी में जुट जाते हैं. लेकिन इस लेख में हम आपको ऐसी घटना बताने जा रहे हैं जिसमें दो पक्षों की लड़ाई में भी कुछ ऐसा ही हुआ था, जिसमें एक पक्ष ने दूसरे के खिलाफ यौन शोषण का मुकदमा दर्ज कराया, व्यक्ति ने दूसरा मुकदमा दर्ज कराने की जगह FIR रद्द करने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की. इस मामले में अदालत का फैसला यह दर्शाता है कि शारीरिक संपर्क की व्याख्या संदर्भ के अनुसार होनी चाहिए. आइये जानते हैं कि इस मामले में क्या हुआ, केरल राज्य के इस मामले हाईकोर्ट ने क्या फैसला सुनाया....
हाल ही में केरल हाईकोर्ट ने एक मुकदमे को रद्द करने का आदेश देते हुए प्रतिरोध में हुए शारीरिक संपर्क को यौन पहल या उत्पीड़न मानने से इंकार किया है. केरल हाईकोर्ट ने कहा कि झगड़े के दौरान प्रतिरोध में हुए शारीरिक संपर्क या टच को यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता है. अदालत ने साफ कहा कि झगड़े के दौरान होनेवाले शारीरिक संपर्क को अप्रिय और स्पष्ट यौन संकेत नहीं माना जा सकता है, इस शारीरिक संपर्क (Physical contact) को प्रतिरोध का हिस्सा मानना चाहिए. इस टिप्पणी के साथ केरल हाईकोर्ट ने IPC की धारा 354 और 354A(1) के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने के आदेश दिए.
केरल हाईकोर्ट में जस्टिस ए. बदरुद्दीन की एकल पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता युवा महोत्सव के दौरान अनुशासन बनाए रखने के लिए नियमों को लागू करने का प्रयास कर रहा था. रिकार्ड पर रखे गए सामग्री के आधार पर अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता का कोई इरादा नहीं था कि वह शिकायतकर्ता (महिला) की गरिमा को ठेस पहुंचाए या यौन उत्पीड़न करे.
जस्टिस ने कहा,
"तथ्यों के अनुसार, महिला कार्यक्रम समाप्त होने के बाद ऑडिटोरियम में जाने की प्रयास कर रही थी और ऐसा करने से उसे याचिकाकर्ता ने रोका, परिणामस्वरूप आपस में कुछ विवाद हुआ. प्रथम दृष्टतया ऐसा नहीं कहा जा सकता कि याची का उद्देश्य महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना था. साथ ही इस दौरान हुए शारीरिक संपर्क को अवांछित और स्पष्ट यौन इशारों के रूप में नहीं माना जा सकता है."
अदालत ने आगे कहा कि महिला ने इस बात की शिकायत कॉलेज प्रशासन से भी नहीं की, जिससे जाहिर होता है कि आरोप बाद में बनाए गए है. अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज शिकायत को रद्द करने का आदेश देने के साथ-साथ हिदायत देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता किसी भी तरह से शिकायतकर्ता की पढ़ाई में बाधा नहीं डालेगा.