National Medical Commission: राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) ने बृहस्पतिवार को योग्यता-आधारित चिकित्सा शिक्षा पाठ्यक्रम के तहत संशोधित दिशानिर्देश जारी किये, जिसमें अप्राकृतिक यौन अपराधों की सूची से कुकर्म और महिला समलैंगिकता (लेस्बियनिज्म) को हटा दिया गया है. एनएमसी ने ‘हाइमन’ (योनिद्वार की झिल्ली) और उसके प्रकार, इसके चिकित्सीय-कानूनी महत्व तथा कौमार्य व शीलभंग को परिभाषित करने जैसे विषयों को भी हटा दिया है.
संशोधित पाठ्यक्रम में कहा गया है कि कौमार्य के ‘संकेतों’ का वर्णन और चर्चा करना अवैज्ञानिक, अमानवीय और भेदभावपूर्ण है। तथाकथित ‘कौमार्य परीक्षण’ में महिला के जननांग का ‘टू फिंगर टेस्ट’ शामिल है. यह पाठ्यक्रम छात्रों को यह सिखाता है कि यदि ऐसा कोई आदेश दिया जाता है तो इन परीक्षणों के अवैज्ञानिक आधार के बारे में अदालतों को कैसे अवगत कराया जाए. चर्चा के अन्य विषयों, जैसे कि यौन विकृतियां, कामोत्तेजना, ‘ट्रांसवेस्टिज्म’, परपीड़न, ‘नेक्रोफैगिया’, ‘मासोकिज्म’, ‘फ्रोटूरिज्म’ और ‘नेक्रोफिलिया’ आदि को भी हटा दिया गया है.
कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करने पर राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग ने पांच सितंबर को उन दिशानिर्देशों को वापस ले लिया, जिसमें स्नातक चिकित्सा छात्रों के लिए फॉरेंसिक मेडिसिन और टॉक्सिकोलॉजी पाठ्यक्रम के तहत कुकर्म और महिला समलैंगिकता को ‘अप्राकृतिक यौन अपराध’ के रूप में फिर से पेश किया गया था। जबकि इसके पहले 2022 में भी इन्हें अपराध के रूप में हटा दिया गया था.
इन विषयों को 2022 में मद्रास उच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार हटा दिया गया था. फोरेंसिक मेडिसिन और टॉक्सिकोलॉजी के तहत संशोधित पाठ्यक्रम ने अब इन सभी विषयों को खत्म कर दिया है. बृहस्पतिवार को जारी संशोधित दिशानिर्देश में ‘पैराफिलिया’ और ‘पैराफिलिक’ डिसऑर्डर के बीच अंतर सिखाने का भी जिक्र है.