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सिद्धरमैया की याचिका पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने आदेश रखा सुरक्षित, राज्यपाल की अभियोजन मंजूरी को चुनौती देने से जुड़ा है मामला

कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की उस याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा है, जिसमें मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) मामले में उनके खिलाफ अभियोग चलाने के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत द्वारा दी गई मंजूरी की वैधता को चुनौती दी गई थी.

Written by Satyam Kumar |Published : September 13, 2024 10:38 AM IST

karnataka High Court: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की उस याचिका पर बृहस्पतिवार को सुनवाई पूरी कर ली, जिसमें मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) मामले में उनके खिलाफ अभियोग चलाने के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत द्वारा दी गई मंजूरी की वैधता को चुनौती दी गई थी. कर्नाटक सीएम सिद्धरमैया ने 19 अगस्त को राज्यपाल के आदेश की वैधता को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था.

कौन सा मंत्रीमंडल अपने नेता के खिलाफ कार्रवाई करने के देगा आदेश?

कर्नाटक हाईकोर्ट में जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने सुनवाई पूरी करने के बाद कहा कि आदेश सुरक्षित रखा जाता है, अंतरिम आदेश याचिका के निपटारे तक जारी रहेगा. अदालत ने मामले में फैसला सुरक्षित रखा है. अदालत ने 19 अगस्त के अपने उस अंतरिम आदेश की अवधि भी आगे बढ़ा दी, जिसमें विशेष जनप्रतिनिधि अदालत को निर्देश दिया गया था कि वह सिद्धरमैया के खिलाफ शिकायतों की सुनवाई को इस याचिका के निपटारे तक टाल दे.

सुनवाई के दौरान कर्नाटक सीएम सिद्धारमैया की ओर से मौजूद वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल ने अपने फैसले में मनमानी दिखाते हुए अपने मंत्रीमंडल के फैसले को अतार्किक बताया.

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इस पर जस्टिस ने कहा कि कौन सा मंत्रिमंडल यह कहेगा कि उनके नेता के खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए? कौन सा मंत्रिमंडल यह कहकर मंजूरी देगा कि ‘वह हमारे मुख्यमंत्री हैं, राज्यपाल ने मंत्रिमंडल की राय मांगी है और यह मंत्रिमंडल अभियोजन के लिए मंजूरी देने जा रहा है. कौन सा मंत्रिमंडल ऐसा करेगा और अपने नेता के खिलाफ जाएगा?’

वरिष्ठ वकील ने कहा कि राज्यपाल के पास इस बात का कोई तर्क नहीं है कि प्रथम दृष्टया वह (मुख्यमंत्री) दोषी क्यों हैं या मंत्रिमंडल गलत क्यों है.

पूरा मामला क्या है?

राज्यपाल ने प्रदीप कुमार एस.पी., टी.जे. अब्राहम और स्नेहमयी कृष्णा की याचिकाओं में उल्लिखित कथित अपराधों के लिए 16 अगस्त को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17ए और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी दी थी.

मुख्यमंत्री ने  राज्यपाल के आदेश को रद्द करने का अनुरोध करते हुए कहा कि मंजूरी आदेश बिना सोचे-समझे जारी किया गया और यह वैधानिक नियमों का उल्लंघन है. मुख्यमंत्री की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और रविवर्मा कुमार ने आज की सुनवाई के दौरान दलीलें पेश कीं.

सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल के पूरे पांच-छह पन्ने के आदेश में केवल एक ही बात है कि मैं स्वतंत्र रूप से निर्णय ले रहा हूं, मैं आपके (मंत्रिमंडल) आदेश पर नहीं चलूंगा. सिद्धारमैया के वकील ने दावा किया कि राज्यपाल ने इन पांच पन्नों से आगे जाकर एक शब्द भी नहीं जोड़ा है कि इन लोगों (कैबिनेट) से बाध्य न होने के कारण मैं पाता हूं कि कैसे, कब और कहां मुख्यमंत्री प्रथम दृष्टया दोषी हैं, और इसलिए मैं मंजूरी देता हूं. सिंघवी राज्यपाल द्वारा मंत्रिपरिषद के लिए गए उस निर्णय को अतार्किक करार दिए जाने का जिक्र कर रहे थे, जिसमें उन्हें मुख्यमंत्री को जारी कारण बताओ नोटिस वापस लेने और अभियोजन मंजूरी मांगने वाले आवेदन को खारिज करने की सलाह दी गई थी.